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घंटाकर्ण-कल्प
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बन जाता है, दूसरे ॐ को लेकर ह्रीं से नीचे के कोठों में जो मंत्राक्षर लिखे हैं उनसे दूसरा मंत्र बन जाता है, इम यंत्र में दोनों तरफ मंत्राक्षर लिखे हैं यह यंत्र द्वारा रक्षा करने वाले हैं अतः इस मंत्राक्षर संयुक्त यंत्र को सावधानी से सिद्ध करना चाहिए।
यंत्र पांचवां-इस यंत्र की विशेष महिमा है, स्तोत्र के साथ ही इसमें मूलमंत्र भी लिखा गया है, एकसो छन्यु कोठे का यह यंत्र है घंटाकर्ण देव का इससे बड़ा कोई यन्त्र नहीं है । मूलमंत्र द्वारा घंटाकर्ण देव को प्रसन्न करना है, इसके अतिरिक्त मध्य में एकसो सित्तरिया यन्त्र
और तिजय पहुत स्तोत्र का मूल मंत्र लिख कर मध्य में ही पंदरिया यन्त्र लिखा है, जिससे स्तोत्र, मन्त्र, यन्त्र, मंत्र, और यन्त्र पांचों ही द्वारा यह यन्त्र बना है, एकसो सितरिया अंक के साथ ही मंत्राक्षर लिख और भी विशेषता कर दी है, अतः इस मंत्र-यन्त्र को सावधान रहकर सिद्ध करना चाहिए पहले घंटाकणे को मूलमंत्र द्वारा सिद्ध कर एकसो सितरिया यन्त्र को मंत्राक्षर से सिद्ध करना चाहिये
और फिर पंदरिया यन्त्र लिखना-इससे जितना बताया गया है सब उत्तम है। ___यन्त्र छट्ठा पटकोण वाला है, इसका मूलमंत्र तो छ
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