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घंटाकगा कर
उपाध्यायजी महाराज करते हैं जिमका पट भी बना हुआ है और मन्त्र यन्त्र भी है।
यहां पर इतनी भूमिका बताकर घंटाकर्ण कल्प की बात कहना है । घंटाकर्ण कल्प पूर्वाचार्यो--ग्राप्त पुरुषों का बनाया हुग है और इस देव की आराधना करने में कार्य की मिद्धि होती है. इसी लिए 'प्रतिष्ठा कल्प में इस देव का स्मरण कर मुखडी भेट करना आवश्यकीय बताया
और एक थाल में मन्त्र यन्त्र लिख कर उसमें मुखडी रख भंट करते हैं। प्रतिष्ठा के विधान में तो यह म्मरण पावश्यकीय बताया है।
मन्त्राधिष्ठित देव होते हैं, और विद्याप्रवादपूर्वक मन्त्र प्रवाद पूर्व में से मन्त्र उद्धृत कर पर्वाचार्यों ने देवों को भी ममकिती बनाया है, उदाहरण है कि तीर्थाधिराज शत्रंजय का अधिष्ठायक देव कपदीयक्ष मिथ्यान्वी हो गया था, जिमसे वज्रम्वामी ने उसकी स्थापना हटा कर मरे कपदीयक्ष को बुला कर ममकिती बनाया और उसकी स्थापना की जिसका वर्णन शत्रुजय उद्धार में श्रीधनेश्वरसूरि महागज ने किया है, और आनंद विमलसूरि महागज ने श्रीमणिभद्र वीर की स्थापना पालनपुर के पास मगरवाडा ग्राम में की जो अद्यापि विद्यमान है। दूसरी स्थापना विजा
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