Book Title: Yog Prayog Ayog Author(s): Muktiprabhashreeji Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 8
________________ अर्पण ओ महायोगी, परम प्रयोगी, सदा अयोगी, आदिश्वर ! योगों में विराम ! प्रयोगों के परिणाम ! अयोगों में अविराम आपको शतकोटि प्रणाम ! प्रभु ! आप, अयोगी हो पर योग के सिद्धिमय सेतु हो, जन जन के अन्तःकरण के कल्याणमय केतु हो ! पूज्य हो पूजा के पुण्यमय प्रकरण हो योग-प्रयोग-अयोग रूप अनुभूति के अवतरण हो । प्रभु ! तेरा ही तुझको अर्पण करती हूँ । मेरे शुभ योग - अयोग के भावों का, तेरे पुण्यमय प्रयोगों के स्रावों का, चरणों में समर्पण करती हूँ । - तेरी मुक्तिप्रभाPage Navigation
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