Book Title: Varddhaman Mahavira Author(s): Nirmal Kumar Jain Publisher: Nirmalkumar Jain View full book textPage 5
________________ विचार भी गेजमर्ग के व्यवहार में उतारे जा सकते हैं। एक सजग ग्ण-बांकुर योद्धा की नग्ह इन्होंने ममाज की नकागत्मक, निष्क्रिय और प्रमादमयी शक्तियों को ही नवजीवन और नये गप्ट का निर्माण करने वाली शक्तियों के स्रोत में बदला है । वैचारिक मौलिकता के माथ यह विलक्षण व्यवहारिक प्रतिभा देकर ईश्वर ने इन पर जो अगीम अनुकम्पा की है उसके उपयवन गष्ट्र और मनप्य जानि की सेवा का वन जगाकर पृथ्वी माना ने उन्हें उन महान गणों को बिना विचलित हुए धारण करने की योग्यता भी दी है। वृक्षारोपण अभियान में हमें इमका प्रमाण देखने का अवमा मिला । जहां दो वर्ष पूर्व केवल तीस हजार वृक्ष माल भर में लगे थे और जहां का प्रगतिशील किमान वृक्षों को बेनी का दुश्मन मममता था उम जनपद में इन्होंने एक ही वर्ष में माद पांच लाख वृक्ष लगवाये। हम लोगों ने देखा किम तरह इन्होंने गांव-गाव में घूमकर लोगों को मन्दर फलदार वृक्ष लगाने का आव्हान किया। आज इम जनपद का जनमानम जानता है कि मुन्दर प्रकृति मनुष्य के हृदय और मस्निाक के मैल धो देती है। हमेशा प्रसिद्धि मे दूर रहने वाले, कर्तव्यनिष्ठ दम युवा अधिकारी की वार्ताएं, इनकी अपने प्रकाश को छुपाये रखने की प्रवृनि के कारण, छुपी न रह जायं इमी उद्देश्य को लेकर भारतीय साहित्य परिपद् ने सप्रू हाउम दिल्ली में अपूर्व दार्शनिक संध्या आयोजित की जिसका उद्घाटन माननीय डा. कर्णमिह (मंत्री भारत मरकार) और सभापतित्व गप्ट्रकवि श्री मोहनलाल द्विवेदी ने किया। इसमें देश के अनेक लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया । भारतीय साहित्य परिषद् के कुछ कर्मठ सदम्य हमारी तरह श्री निर्मल कुमार की अभूतपूर्व प्रतिभा का चमत्कार देख चुके है । अकेले निरन्तर सत्य अन्वेषण में लगी इस सर्वथा मौलिक प्रतिभा को उन्होंने प्रमुख बक्ता बनने पर मजबूरPage Navigation
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