Book Title: Upmiti Kathoddhar
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkar Gyanmandir Surat

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Page 92
________________ . 75 उपमितिभवप्रपंचाकथाद्धारे अधिकार-३ अथ तद्भववेद्यगुटिका-क्षये पुनरन्यां गुटिकां दत्त्वा प्रेषितोऽहं भवितव्यतया पापिष्ठनिवासाख्यनगरे, तत्र चिराय बहु-दुःखशतान्यनुभूय पुनस्ततो निर्गत्य प्रायः स्त्रीवेदतया क्लीबतया क्वाऽपि च पुंस्त्वेन नानाजाति-योनि-कुलादिष्वनन्तं कालं यावद् विडम्बितोऽहं भवितव्यतया / इत्थं बहुधा विडम्ब्य विडम्ब्य साऽन्यदा किञ्चित् प्रसद्य मामुवाच- "आर्यपुत्र ! बहुशः काष्टान्यनुभूतानि त्वया, ततोऽधुना मदादिष्टं पुण्योदयसहायमादाय याहि मनुष्यगतिनगरमिति प्रतिश्रुत्य प्रस्थितोऽहम् / इत्थं माया-स्तेय- घ्राणेन्द्रियादिसङ्गसम्भवानर्थं मत्वा भविनस्तेषामासिक्तं त्यजत सुखवृद्धयै // . इत्युपमितकथोद्धारे मायास्तेय घ्राणेन्द्रियादिविपाक-दर्शनाख्य . स्तृतीयोऽधिकारः // 3 //

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