Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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उपासकदशांग सानुवाद
१ आनंदाध्ययन
॥१७॥
॥१७॥
६. इह खलु 'आणन्दा'ई समणे भगवं महावीरे आणन्दं समणोवासगं एवं वयासी-"एवं खलु आणन्दा ! समणोवासएणं अभिगयजीवाजीवेणं जाव अणइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पञ्च अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा, संका,कला,विइगिच्छा, परपासण्डपसंसा, परपासण्डसंथवे । तयाणन्तरं च णं थूलगस्स | पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पञ्च अइयारा पेयाला जाणियब्वा न समायरियव्वा, तंजहा-बन्धे, वहे,
आ प्रमाणे-१ अपध्यानाचरित-दुर्ध्यान करवू, २ प्रमादाचरित-प्रमाद सेववो, ३ हिंसप्तदान-हिंसा करनार शस्त्रादि आपवां, ४ पापकर्मनो उपदेश करवो.
६. अहीं 'हे आनन्द'! एम संबोधीने श्रमण भगवान् महावीरे आनन्द श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कधं-हे आनन्द ! जेणे जीवाजीव तत्वने जाणेला छे एवा अने यावत् निर्ग्रन्थ प्रवचनथी अनतिक्रमणीय-देवादि वडे पण अचलायमान एवा श्रमणोपासके सम्यक्त्वना पेयालाप्रत्याण्यान करे छे. १ 'अवज्झाणायरिय' अपध्यान-आर्त अने रौद्ररूप दुर्ध्यान, ते वडे आचरित-सेवेल अनर्थदंड ते अपध्यानाचरित. प्रमाणे २ प्रमादाचरित पण जाणवो. परन्तु विकथारूप अथवा तेल वगेरेना पात्रने नहि ढांकवारूप प्रमाद जाणवो. ३ हिंस्र-हिंसाना साधनभूत शस्त्रादि बीजाने आपवां ते हिंस्रप्रदान. ४ 'खेतर खेडो' वगेरे रूप पापोपदेश समजबो.
६ 'आणंदाइ' त्ति । हे आनन्द ! ए प्रमाणे संबोधी श्रमण भगवान् महावीरे आनन्दने आ प्रमाणे का, एज बाबत कहे छे'पवं खलु आणन्दा' इत्यादि. हे आनन्द ! जीवाजीवादि तत्त्वना जाणनार अने अनतिक्रमणीय-देवादियो अचलायमान श्रावके सम्यक्त्वना पांच अतिचारो-मिथ्यात्वना मोहनीयना उदयविशेषथी आत्माना अशुभ परिणामो, जे सम्यक्त्वने 'अतिचारयन्ति' दृषित करे छे, ते गुणवान् पुरुषोनी अनुपबृंहणा-प्रशंसा न करवी वगेरे अनेक प्रकारना छे, तेओमा 'पेयाला'-सारभूत, प्रधान, स्थूलपणे

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