Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ उपासकदशांग सानुवाद आनंदाध्ययन ॥६२॥ ॥६२॥ ठाणस्स आलोएहि, जाव पडिवजाहि, आणन्दं च समणोवासयं एयम8 खामेहि। तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तहत्ति एयम8 विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ,जाव पडिवजह, आणन्दं च समणोवासयं एयमढें खामेइ । तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जणवयविहारं विहरह॥ १५. तए णं से आणन्दे समणोवासए बहहिं सीलव्वएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं | झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे एम कही श्रमण भगवंत महावीरे भगवान् गौतमने ए प्रमाणे कह्यु-हे गौतम ! तुं ज ते स्थाननी आलोचना कर, यावत् तप कर्मनो स्वीकार कर, अने आनन्द श्रमणोपासकने ए अर्थ संबन्धे खमाव'. त्यार बाद ते भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीरने 'तहत्ति कही ए अर्थने विनय वडे कबूल करे छे. कबूल करीने ते स्थाननी आलोचना करे छे, यावत् प्रायश्चितनो स्वीकार करे छे, अने आनन्द श्रमणोपासकने ए बाबत खमावे छे. त्यार बाद श्रमण भगवान् महावीर अन्य कोइ दिवसे बहारना देशोमां विहरे छे. १५. त्यार पछी ते आनन्द श्रमणोपासक घणां शीलवतो वडे यावत् आत्माने भावित करतां वीश वरस सुधी श्रमणोपासकनो पर्याय पाळीने अने अगियार श्रावकनी प्रतिमाने सम्यक् काया वडे स्पर्शाने मासिक संलेखना वडे आत्माने शुष्क करी साठ भक्त अनशन बडे व्यतीत करी आलोचना अने प्रतिक्रमण करी समाधिने प्राप्त थइ काळ समये काळ करीने सौधर्म देवलोकमां सौधर्मा

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184