Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
View full book text
________________
महाशतक
उपासक दशांग सानुवाद
अध्ययन
रित्तए' एवं सम्पेहेइ । संपेहित्ता तासिं दुवालसण्हं सवत्तीणं अन्तराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागर- माणी विहरइ । तए णं सा रेवई गाहावइणी अन्नया कयाइ तासिं दुवालसण्हं सवत्तीणं अन्तरं जाणित्ता छ स-| वत्तीओ सत्थप्पओगेणं उद्दवेइ, उद्दवेत्ता छ सवत्तीओ विसप्पओगेणं उद्दवेइ, उद्दवेत्ता तासिं दुवालसण्हं सवत्तीणं कोलघरियं एगमेगं हिरण्णकोडिं एगमेगं वयं सयमेव पडिवजइ, पडिवज्जित्ता महासयएणं समणो.
॥१६३।।
॥१६३॥
• मारे छे अने छ सपत्नीओने विषप्रयोगथी मारे छे. मारीने ते बारे सपत्नीओना पितृगृहथी (पियरथी ) आवेल एक एक हिरण्य
कोटी अने एक बजने स्वयमेव ग्रहण करे छे, ग्रहण करीने महाशतक श्रमणोपासक साथे उदार एवा भोग्य भोगोने भोगवती रहे
REEEEXXERCEEEEKKEEEEEEEECH
३'अन्तराणि' अवसरो, 'छिद्राणि'-विरल-थोडा परिवार रूप छिद्रो, 'विवरान्' एकान्तो. 'मांसलोलुपे'त्यादि. मांसमां लंपट, एनंज Ikx विशेषण आपे छे-'मांसमूर्छिता' मांसमां तेना दोष नहि जाणवा वडे मूढ थयेली, 'मांस ग्रथिता' मांसना अनुराग रूप तन्तु वडे गुंथायेली, 'मांसगृद्धा' तेनो उपभोग करवा छतां जेनी इच्छानो विच्छेद थयो नथी पवी, 'मांसाध्युपपन्ना' मांसने विशे एकाग्र चित्तवाळी अने तेथी बहु प्रकारना सामान्य अने विशेष प्रकारना मांसनी साथे, केवा? ते संबन्धे कहे छे-'सोल्लिएहिं' शूल्यकैः-शूलमां परोवीने संस्कार करेला. 'तलितैः' घो इत्यादि वडे अग्नि उपर तळेला, 'भर्जितैः' अग्निमात्र वडे पकावेला, अहीं 'सह' नो अध्याहार समजबो. एटले तेवा मांसनी साथे सुरा-काष्ठ अने पिष्टथी बनेल, मधु-मध, मेरक-पक जातनुं मद्य, मद्य-गोळ अने धावडीथी थयेल मदिरा, सिधु | अने प्रसन्ना-पक जातनी मदिराने 'आस्वादयन्ती' इषत्-थोडो स्वाद करती, कदाचित् 'विस्वादयन्ती' विविध प्रकारे अथवा विशेष प्रकारे | स्वाद करती, कदाचित् 'परिभाजयन्ती' पोताना समस्त परिवारने उपर कहेला तेना (मद्यना) विशेष प्रकारने वहेंचती विहरे छे.

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184