Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 168
________________ & & & महाशतक अध्ययन & & उपासक दशांग सानुवाद ॥१६८॥ && ॥१६८॥ && && & जाव एक्कारसवि । तए णं से महासयए समणोवासए तेणं उरालेणं जाव किसे धमणिसन्तए जाए । तए ण तस्स महासययस्स समणोवासयस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ४-'एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं जहा आणन्दो तहेव अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाझुसियसरीरे भत्तपाणपडियाइक्खिए कालं अणवकडमाणे विहरइ । तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासगस्स सुभेणं अज्झवसाणेणं जाव खओवसमेणं ओहिणाणे समुप्पन्ने । पुरत्थिमेण लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्ते जाणइ पासइ, एवं दक्षिणेणं पञ्चत्थिमेणं, उत्तरेणं जाव चुल्लहिमवन्तं वासहरपब्वयं जाणइ पासइ, अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सटिइयं जाणइ पासइ॥ (विधिथी ) पूर्ण करे छे. एम अगियारे प्रतिमाने पूर्ण करे छे. त्यार पछी महाशतक श्रमणोपासक ते उदार तप वडे यावत् कुशदुर्बळ थयो अने धमनीओ (नाडीओ) बडे व्याप्त थयो. ते पछी ते महाशतक श्रमणोपासकने अन्य कोइ दिवसे मध्य रात्रिना समये धर्म जागरण करता आ आवा प्रकारनो विचार थयो-आ उदार तप वडे हुं कृश थयो छ-इत्यादि आनन्दनी पेठे सौथी छेल्ली मारणान्तिक संलेखना वडे क्षीण थयुं छे शरीर जेर्नु एवो अने प्रत्याख्यात-त्याग कर्यो छे भात पाणीनो जेणे एवो ते काळनी दरकार कर्या सिवाय विहरे छे. त्यार पछी महाशतक श्रमणोपासकने शुभ अध्यवसाय वडे यावत् (अवधिज्ञानावरणना) क्षयोपशम बडे अबधिज्ञान उत्पन्न थयु. ते पूर्व दिशाए लवण समुद्रमा हजार योजन प्रमाण क्षेत्र जाणे छे अने देखे छे. एम दक्षिण अने पश्चिम दिशाए जाणवू. उत्तर दिशाए यावत् चुल्ल हिमवंत वर्षधर पर्वतने जाणे छे अने देखे छे. अधो दिशामां रत्नप्रभा-पृथ्वीना चोराशी हजार & & && && * ** *

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