Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ उपासक दशांग सानुवाद. १. सालिहीपिता अध्ययन ॥१८२॥ ॥१८२॥ उवासगदसाओ समत्ताओ॥ उवासगदसाणं सत्तमस्स अङ्गस्स एगो सुयखन्धो दस अज्झयणा एकसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिस्सिज्जति तओ सुयखन्धो समुद्दिस्सिज्जइ अणुण्णविजइ दोसु दिवसेसु, अङ्गं तहेव॥ ॥ सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दसमं अज्झयणं समत्तं ॥ कल्पमा चार पल्योपमनी स्थिति छ, अने बधा श्रावको महाविदेह क्षेत्रमा मोक्षे जवाना छ.] उपासकदशा समाप्त. सातमा उपासकदशा अंगनो एक श्रुतस्कन्ध छे. दश अध्ययनो एक सरखा छे. ते दस दिवसे उपदेशाय छे, त्यार बाद बे दिवसोमां श्रुतस्कन्धनो समुद्देश-सूत्रने स्थिर परिचित करवा माटे उपदेश कराय छे अने अनुज्ञा-संमति अपाय छे तेमज ते अंगनो समुद्देश अने अनुज्ञा अपाय छे. शिष्टादि नामो अरुणपदपूर्वक जाणवा, तेथी अरुणशिष्ट इत्यादि नाम कहेवा. अने ए गाथाओ पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवी. अहीं जेनी व्याख्या करी नथी तेनी व्याख्या ज्ञाताधर्मकथानुं व्याख्यान सावधानपणे जोइने जाणी लेवी. ___ सर्व मनुष्योने प्रायः पोतार्नु बचन अभिमत-इष्ट होय है, परन्तु जे पोताने पण सारी रीते रुचतुं नथी ते बीजाने शी रीते रुचे? तो पण कोइक चित्तना उल्लासथी ए प्रमाणे में कंडक कां छे, तेमा जे युक्त होय तेनो मारी प्रीतिने माटे निर्मल बुद्धिवाळा पुरुषो स्वीकार करो. श्री चन्द्रकुलरूप आकाशमां सूर्यसमान श्रीजिनेश्वराचार्यना शिष्य श्रीमदनवांगीना टीकाकार श्रीमद् अभयदेवाचार्य करेला उपासकदशानी टीकानो अनुवाद समाप्त.

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184