Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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उपासक
दशांग सानुवाद
॥१६९॥
७. तए णं सा रेवई गाहावइणी अन्नया कयाइ मत्ता जाव उत्तरिजयं विकड्डमाणी २ जेणेव पोसहसाला
पासहसाला८महाशतक जेणेव महासयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासययं तहेव भणइ, जाव दोचंपि तचंपि एवं अध्ययन वयासी-'हं भो तहेव । तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहावइणीए दोचंपि तचंपि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते ४ ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता रेवई गाहावइणिं एवं वयासी-'हं भो
॥१६९॥ रेवइ ! अपत्थियपत्थिए ! ४ एवं खलु तुमं अन्तो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया समाणी अदृदुहद्दवसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीइवावरसनी स्थितिवाळा लोलुय अच्युत नामना नरकावासने जाणे छे अने देखे छे. __७. त्यार बाद ते रेवती गृहपत्नी अन्य कोइ दिवसे मत्ता-उन्मत्त थयेली, यावत् उत्तरीय-उपरना वस्त्रने काढी नांखती २ ज्यां पोषधशाला छे अने ज्यां महाशतक श्रमणोपासक छे त्यां आवे छे. आवीने महाशतक श्रमणोपासकने तेमज कहे छे. यावत् तेणे बीजी वार अने त्रीजी वार आ प्रमाणे कडं हे महाशतक श्रमगोपासक ! इत्यादि पूर्वे कहेलुं तेमज जाणवू. ते पछी रेवती गृहपत्नीए बीजीवार अने त्रीजीवार ए प्रमाणे कडं एटले गुस्से थयेलो ४ महाशतक श्रमणोपासक अवधिज्ञान प्रयुंजे छ, प्रयुजीने अवधिज्ञान वडे जाणे छे. जाणीने तेणे रेवती गृहपत्नीने आ प्रमाणे कयु-अप्रार्थित ( मरण )नी प्रार्थना करनार हे रेवती ! तुं खरे| खर सात रातनी (दिवसनी) अंदर अलसक (विषूचिका) रोग वडे पीडित थइ, आर्तध्याननी अत्यन्त परवशताथी दुःखित थयेली
७ 'अलसपणं' विषूचिका विशेषरूप अजीर्ण वडे, तेनुं आ लक्षण छे-आहार उपर न जाय, नीचे न जाय, तेम पाचन न थाय,

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