________________
उपासकदशांग सानुबाद
८महाशतक अध्ययन
॥१६२॥
॥१६२॥
BOORXXXXXXXX
| वासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ, तए णं समणे भगवं महावीरे बहिया जणवयविहारं विहरइ ।।
३. तए णं तीसे रेवईए गाहावइणीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडम्ब० जाव इमेयारूवे | अज्झथिए ४-'एवं खलु अहं इमासिं दुवालसण्हं सवत्तीणं विघाएणं नो संचाएमि महासयएणं समणोवासएणं सद्धिं उरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुञ्जमाणी विहरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयाओ दुवालसवि सवत्तियाओ अग्गिप्पओगेणं वा सत्थप्पओगेणं वा विसप्पओगेणं वा जीवियाओ ववरोवित्ता, एयासिं एगमेगं हिरणकोडिं एगमेगं वयं सयमेव उवसम्पज्जित्ता णं महासयएणं समणोवासएणं सद्धिं उरालाई जाव विहरनो अभिग्रह ग्रहण करे छे-हमेशां बे द्रोण प्रमाण हिरण्यथी भरेला कांस्य पात्र वडे व्यवहार करवो मने कल्पे छे. त्यार बाद महाशतकश्रमणोपासक थयो अने जेणे जीव अने अजीव तच्च जाणेल छे एवो यावत् विहरे छे.
३. त्यार बाद रेवती गृहपत्नीने अन्य कोइ दिवसे मध्य रात्रिना समये कुटुम्ब जागरण करता आ आवा प्रकारनो विचार थयोए प्रमाणे खरेखर हुं आ बार सपत्नीना विघात-प्रतिबन्ध वडे महाशतक श्रमणोपासक साथे उदार मनुष्य संबन्धी भोगवा योग्य भोगोने भोगववाने समर्थ नथी, तो मारे आ बारे सपत्नीओने अग्निप्रयोग वडे, शस्त्रप्रयोग बडे अथवा विषप्रयोग बडे जीवितथी मुक्त करीने अने एओनी एक एक हिरण्यकोटि अने एक एक गायोना बजने स्वयमेव ग्रहण करीने महाशतक श्रमगोपासक साथे उदार भोगो यावत् भोगववा योग्य छ'-एम विचार करे छे, विचार करीने ते बारे सपत्नीओना अन्तर-अवसर, छिद्रो, अने विवरो जोती रहे छे. त्यार बाद रेवती गृहपत्नी अन्य कोइ दिवसे ते वारे सपत्नीओना अन्तर-छिद्रो जाणीने छ सपत्नीओने शस्त्रप्रयोगथी
BAR