Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 67
________________ उपासकदशांग सानुवाद ॥६७॥ कविलकविलाई विगयबी भच्छदंसणाई, उट्ठा उहस्स चैव लम्बा, फालसरिसा से दन्ता, जिन्भा जहा सुष्पकत्तरं | चैव विगयवीभच्छदंसणिजा, हलकुद्दालसंठिया से हणुया, गल्लकडिल्लं च तस्म खड्डे फुटं कचिलं फरुसं महल, वेटोळ अने बीभत्स देखाववाली हती. होठ ऊंटना जेवा लांचा अने तेना दांत फाल-कोशना जेवा हता. तेनी जीभ शूर्पकर्तर- सुप डाना टुकडा जेवी अने वेडोळ तथा बीभत्स देखाववाळी हती. तेनी हनु-वे दाढो हकनी कोदाळी सरखा आकारखाळी हती. तेना गलकडिल - गालरूप कडाइ फुट्ट पहोळी खड्ड खाडना जेवी कपिल-पीळी, परुप-कठोर अने महत्-मोटी हती. तेना स्कन्ध-खभा पोपाठ - पटले जटिल जटावाळी अने कुटिल-गुंचळावाळी छे, तथा 'विगयविभच्छदसणाओ' विकृत-बेडोळ अने बीभत्स-सूग उत्पन्न करनार दर्शन जेवु छे पवी छे. 'सीसघडिविणिग्गयाणि शीर्ष-मस्तक रूप घटी घट, कारण के तेना जेवो तेनो आकार है. शीर्षघट की विनिर्गत-नीकळेल होयनी शुं पवा, कारण के, मस्तक रूप घटथी बहार नीकळीने रहेलां छे वा तेनां अक्षि नेत्रां विकृत - डोळे अने वीभत्स देखाववाळां है. 'कण' तेना कान 'शूर्पकर्तरमेव सूपडाना टुकडा जेवा छे, परन्तु अन्य आकारवाळा नथी, अर्थात् टोपरानी आकृति जेवा अने विकृत अने बीभत्स देखाववाळा छे. 'उरम्भपुडसन्निभा' उरभ्र घेटाना पुट-नासिकाना पुट जेवी 'से' तेनी नासा - नासिका छे. 'हुम्भपुडसंठाणसंटिया' हुरभ्रा-एक जातनुं वादित्र, तेना पुट- पुष्कर-मुखना संस्थान आकृति जेवी नासिका छे, कारण के तेनी नासिका अत्यन्त चीबी होवाथी तेना समान छे. 'इसिरा' मोटा छिद्रवाळा 'जमलचुल्लिसंडासेठिया' यमल-पक साधे रहेला वे चुली-चूलना जेवा आकारवाळा 'तस्य' तेना 'द्वावपि बन्ने 'नासापुढे' नासिकाना विवर छिद्रो छे. बीजी वाचनाम 'महकुब्वसंठिया दोवि से कवोला' जेमां मांसरहित होवाथी अने हाडका उंचा होवाथी तेना 'द्रौवपि' बन्ने कपोल लमणा महल-मोटा कुब्ब-उंडा खाडाना जेवी आकृतिवाळा हे. 'घोडयपुंछ व' घोडाना पूंछडाना जेवी 'तस्य' ते पिशाचनी 'मणि' दाढी-मूछ छे अने 'कपिलपिलानि' अतिशय पीळी तथा विकृत, बेडोळ अने बीभत्सदर्शनवाळी हे. घोडयपुंछ व तस्स कविलफरुसाओ उद्धलोमाओ २ कामदे वाध्ययन ॥६७॥

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