Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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उपासक
दशांग
सानुवाद.
॥१४८॥
माहणे' ? एवं खलु सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महामाहणे उत्पन्नणाणदंसणधरे जाव महियपूइए, जाव तच्चकम्मसम्पयासंपउत्ते, से तेणद्वेणं देवाणुप्पिया ! एवं बुच्चइ - 'समणे भगवं महावीरे महामाहणे' । आगए णं देवाणुप्पिया ! इहं महागोवे ? के णं देवाणुप्पिया ! महागोवे ? समणे भगवं महावीरे महागोवे । से केणट्ठेणं
हे देवानुप्रिय ! अहीं ' महागोप' आव्या हता ? हे देवानुप्रिय ! 'महागोप' कोण छे ? श्रमण भगवान् महावीर महागोप छे. हे देवानुप्रिय ! शा हेतुथी यावत् महागोप कहेवाय छे ? हे देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान् महावीर संसाराटवीमां नाश पामता, विनाश पामता, भक्षण कराता, छेदाता, भेदाता, लुप्त थता, विलुप्त थता घणा जीवोने (गायोनी पेठे) धर्मरूप दंड वडे संरक्षण करता, संगोपन ( बचाव ) करता निर्वाणरूप महा वाडामां पोताना हाथे पहोंचाडे छे, ते हेतुथी हे सद्दालपुत्र ! एम कहेवाय छे के 'श्रमण भगवान् महावीर महागोप छे. '
१३. महागोवेत्यादि. गोप-गायनी रक्षक, अने' बीजा गायना रक्षको करतां अत्यन्त विशिष्ट होवाथी महान् छे माटे महागोप छे. 'नश्यतः' सन्मार्गथी दूर थता, 'विनश्यतः' अनेक प्रकारे मरता, 'खाद्यमानान् मृगादि अवस्थामां वाघ वगेरेथी भक्षण कराता, 'छिद्यमानान्' मनुष्यादिपणामां खङ्ग वगेरेथी छेदाता, 'भिद्यमानान्' भाला वगेरेथी भेदाता, 'लुप्यमानान्' कान, नासिका वगेरेना छेद करवा वडे लुप्त थता, 'विलुप्यमामान्' बाह्य उपधि-उपकरणना हरण करवाथी लोप पामता 'गा इव' गायोनी पेठे (ए अध्याहार जाणवो) एवा जीवने 'निवाण महाबार्ड' निर्वाण रूप महा वाडामां-सिद्धि रूपो गायोना स्थान विशेषमां 'साहित्थि 'ति स्वहस्तेनैवपोताना हाथे साक्षात् 'संपावेइ' पहचाडे छे.
७ सद्दालपुत्र अध्ययन
॥१४८॥

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