Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 156
________________ उपासक दशांग सानुवाद. *सद्दालपुत्र अध्ययन ॥१५६॥ ॥१५६॥ वा विपरिणामित्तए वा ताहे सन्ते तन्ते परितन्ते पोलासपुराओ नगराओ पडिणिक्खमइ, पडिनिक्खभित्ता | बहिया जणवयविहारं विहरइ।। १६. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहहिं सील. जाव भावेमाणस्स चोदस संवच्छरा वइक्कन्ता, पण्णरसमस संवरच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स पुब्वरत्तावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उवसम्पन्जित्ता णं विहरइ । तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोसमर्थ थतो नथी त्यारे श्रान्त थयेलो, तान्त-ग्लानि पामेलो अने परितान्त-खिन्न थयेलो ते पोलासपुर नगरथी नीकळे छे अने बहारना देशोमां विहरे छे. १६. त्यार पछी सद्दालपुत्र श्रमणोपासकने घणा शीलवत वगेरे वडे यावत् आत्माने भावित करतां चौद वर्ष व्यतीत थया. पंदरमा वर्षनी बच्चे धर्तता तेने रात्रिना मध्य समये (धर्म जागरण करता विचार थयो-) यावत् ते पोषधशालामा श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मप्रज्ञप्तिनो स्वीकार करीने 'विहरे छे. ते वार पछी ते सद्दालपुत्र श्रमणोपासकनी पासे मध्य रात्रीए एक देव | आव्यो अने ते देवे एक मोटी काळा कमळ जेवी तलवार लईने सद्दालपुत्र श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कडं-इत्यादि जेम चुलनीपि १५. 'आघवणाहि य' आख्यानै:-कहेवा वडे, 'प्रशापनाभिः' भेदथी वस्तुनी प्ररूपणा करवा वडे, संज्ञापनाभिः' वारंवार जणाववा वडे, 'विज्ञापनाभिः' अनुकूल कहेवा वडे. उपासकदशाना सातमा अध्ययननो टीकानुवाद समाप्त. .

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