Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 155
________________ उपासक दशांग सानुवाद ७ सद्दालपुत्र अध्ययन ॥१५५|| १५५।। १५ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मङ्खलिपुत्तं एवं वयासी-'जम्हा णं देवाणुप्पिया! तुब्भे मम धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स संतेहिं तचेहिं तहिएहिं सन्भूएहिं भावेहिं गुणकित्तणं करेह तम्हा थे | अहं तुम्भे पाडिहारिएणं पीढ० जाच संथारपणं उवनिमन्तेभि, नो चेव णं धम्मोत्ति वा तवोत्ति वा, तं गच्छह ण तुम्भे मम कुम्भारावणेसु पाडिहारियं पीढफलग० जाव ओगिण्हित्ताणं विहरह । तए णं से गोसाले मडलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स एयम8 पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कुम्भारावोसु पाडिहारियं पीढ जाव ओगिण्हित्ता णं विहरइ। तए णं से गोसाले मङ्खलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं जाहे नो संचाइए बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए १५. त्यार बाद श्रमणोपासक सद्दालपुत्रे मंखलिपुत्र गोशालकने आ प्रमाणे कह्यु-हे देवानुप्रिय ! जे माटे मारा धर्माचार्य महावीरना विद्यमान, सत्य, तथाप्रकारना सद्भूत भावो वडे गुणकीर्तन करो छो, तेथी हुं तमने (प्रातिहारिक) पाछा आपवा योग्य पीठआसन, यावत् संस्तारक वडे आमन्त्रण करुं छु, परन्तु धर्म अने तपनी बुद्धिथी करतो नथी. ते माटे तमे जाओ अने मारा कुंभकारनी शालामा प्रातिहारिक पीठ, फलक यावत् ग्रहण करीने रहो. त्यार पछी ते मंखलिपुत्र गोशालक श्रमणोपासक सद्दालपुत्रने ज्यारे आघवणा-कथन, प्रज्ञापना, संज्ञापना अने विज्ञापना वडे निग्रन्थ प्रवचनथी चलायमान करवाने, क्षोभ करवाने, विपरिणाम करवाने हाथीना दांतने विशे प्रसिद्ध छे, तो पण समानपणाथी सुअरना दान्तने विशे जाणवो. 'निश्चलम्' सामान्यतः अचल, 'निष्पन्द'-कंइ पण चलन क्रियाथी रहित. ***** ****

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