Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 146
________________ उपासकदशांग सानुवाद ॥१४६॥ १२. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ । तए णं से गोसाले मङ्कलिपुत्ते इमी से कहाए लट्ठे समाणे एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गन्धाणं दिहिं | पडिवन्ने, तं गच्छामि णं सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं निग्गन्धाणं दिहिं वामेत्ता पुणरवि आजीवियदिट्ठि गेण्डावित्तए ' तिकट्टु एवं सम्पेहेइ, संपेहित्ता आजीवियसङ्घसम्परिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे जेणेव आजीवियसभा तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता आजीवियसभाए भण्डनिक्खेवं करेइ । करेत्ता कइवएहिं आजीविएहिं सद्धिं जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छइ । तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोधार्मिक प्रवर यान (रथ) उपर चढे छे, चढीने जे दिशाथी आवी हती ते दिशा तरफ जाय छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीर अन्य कोई दिवसे पोलासपुर नगरथी अने सहस्राम्रवन उद्यानथी नीकळे छे अने नीकळीने बहारना देशोमां विहरे छे. १२. त्यार पछी सद्दालपुत्र श्रमणोपासक थयो अने जेणे जीवाजीव तच्च जाणेला छे एवो यावत् विहरे छे. त्यार पछी मंखलिपुत्र गोशालक आ वातने जाणी 'ए प्रमाणे खरेखर सद्दालपुत्रे आजीविकसमयनो त्याग करीने श्रमण निग्रेन्थनी दृष्टि अंगीकार करी छे, तो हुं जउं अने आजीविकोपासक सद्दालपुत्रने श्रमण निर्ग्रन्थोनी दृष्टिनो त्याग करावी फरीथी आजीविकनी दृष्टि ग्रहण करावं' एम विचारे छे. एम विचारी आजीविकना संघसहित ज्यां पोलासपुर नगर छे अने ज्यां आजीविकसभा छे त्यां आवे छे. त्यां आवीने आजीविकसभामां भांड-पात्रादि उपकरण मूके छे. मूकीने केटलाक आजीविको साथै ज्यां सद्दालपुत्र श्रमणोपासक छे त्यां आवे छे. ते वारे सद्दालपुत्र श्रमणोपासक मंखलिपुत्र गोशालने आवतो जुए छे. आवतो जोइने तेनो ७सद्दाल पुत्र अध्ययन ॥१४६॥

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