Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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उपासकदशांग
सानुवाद
॥१२७॥
गणिपिडगं अहिज़माणेहिं अन्नउत्थिया अट्ठेहि य जाव निष्पट्टपसिणवागरणा करित्तए । तए णं समणा निगन्धाय निग्गन्धीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स तहत्ति एयमहं विणएणं पडिसुणेन्ति । तए णं से कुण्डको लिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता परिणाई पुच्छड, पुच्छित्ता अट्टमादियर, आदिइत्ता जामेव दिसं पाउवभूए तामेव दिसं पडिगए। सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ । ७. तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स बहहिं सीलव्जाव भावेमाणस्स चोदस्स संच्छराई इन्ताई, पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अन्तरा वहमाणस्स अन्नया कयाइ जहा कामदेवो तहा जेट्ठपुत्तं वेत्ता तदा पोसहसालाए जाव धम्मपण्णत्ति उवसम्पजित्ता णं विहरः । एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेब जाव गणिपिटकनुं अध्ययन करता एवा श्रमण निर्ग्रन्थोए अर्थ वडे यावत् अन्यतीर्थिकोने निरुत्तर - निरास करवा शक्य छे. त्यार | पछी श्रमण निर्ग्रन्थो अने निर्ग्रन्थीओ श्रमण भगवंत महावीरना ए अर्थने 'तह'त्ति कही विनय वडे स्वीकारे छे. त्यार बाद कुंड कोलिक श्रमणोपासक श्रमण भगवंत महावीरने वन्दन अने नमस्कार करे छे. वन्दन अने नमस्कार करी, प्रश्नो पूछे छे, पूछीने अर्थने ग्रहण करे छे, अर्थ ग्रहण करीने जे दिशाथी आव्यो हतो ते दिशा तरफ गयो. पछी महावीरस्वामी बहारना देशोमां विहार करे छे.
त्यार बाद ते कुंडकोलिक श्रमणोपासकने घणा शील- व्रतादि बडे यावत् आत्माने भावित करता चौद वर्ष व्यतीत थया अने पंदरमा वर्षानी बच्चे वर्तता तेने अन्य दिवसे ( कदाचित् मध्य रात्रिना समये धर्मजागरण करतां आवा प्रकारनो संकल्प थयो-इत्यादि) कामदेवनी पेठे ते प्रमाणे ज्येष्ठ पुत्रने स्थापीने अने तेमज पोपधशालामां यावद् धर्मप्रज्ञप्तिनो स्वीकार करीने विहरे छे. एम
६ कुंडकोलिक अ ध्ययन
॥१२७॥

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