Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
View full book text
________________
उपासकदशांग सानुवाद
७ सद्दालपुत्र अध्ययन
॥१२९॥
॥१२९॥
च्छियट्टे विणिच्छियढे अभिगयढे अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ते य, अयमाउसो! आजीवियसमए अढे अयं परमढे सेसे अणद्वेत्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिण्णकोडी निहाणपउत्ता, एक्का बुड्विपउत्ता, एक्का पवित्थरपउत्ता, एके वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं || तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नाम भारिया होत्था । तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पश्च कुम्भकारावणसया होत्था । तत्थ णं बहवे पुरिसा दि| पणभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्धघडए य कलसए य अलिञ्जरए सिद्धान्तनो अर्थ जेणे जाण्यो छे, जेणे अर्थ ग्रहण कर्यो छे, जेणे अर्थ पूछयो छे, जेणे अर्थ विशेषतः निश्चित कर्यो छे अने जेणे तात्पर्यथी अर्थने जाण्यो छे एवो, तथा अस्थिनी मज्जामां प्रेमना अनुराग बडे रंगायेलो आजीविकनो उपासक सद्दालपुत्र नामे कुंभार रहेतो हतो. हे आयुष्मन् ! आ 'आजीविकनो समय-सिद्धान्त एज अर्थरूप छे, एज परमार्थरूप छे अने बाकी बधु अनर्थ रूप छ' एम ते आजीविकना समय वडे आत्माने भावतो-वासित करतो विहरे छे. ते आजीविकना उपासक सद्दालपुत्रने एक श्रवणथी अर्थ जाणेलो छ जेणे पयो, एटले जेणे श्रवण मात्र करेलुं छे पवो, 'गृहीतार्थः' बोध थवाथी जेणे अर्थ जाणेल छे पवो, 'पृष्टार्थः' संशय पडवाथी जेणे अर्थ पूछ्यो छे पवो, 'निश्चितार्थः' उत्तर मळवाथी विशेष निश्चित करेल छे अर्थ जेणे एवो आजीविकोपासक सद्दालपुत्र है.
'दिण्णभइभत्तवेयण त्ति दत्तभृतिभक्तवेतनः-आप्यु छे भृति-पगार, भक्त-भोजन रूप वेतन-मूल्य जेओने एवा. 'कल्लाकलिं'

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184