Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 132
________________ उपासक दशांग सानुवाद ॥१३२॥ | पज्जुवासेन्जाहि, पाडिहारिएणं पीढफलगसिज्जासंथारएणं उवनिमन्तेजाहि । दोच्चपि तचंपि एवं वयइ, वइत्ता C७ सद्दालपुत्र जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। अध्ययन ३. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झ पासना करजे, तथा प्रातिहारिक (पाछा आपवा योग्य) पीठ-आसन, फलक-पाटीउ, शय्या-वसति-स्थान, अने संस्तारक-संथारा ॥१३२॥ वडे निमंत्रण करजे. एम बीजीवार अने त्रीजीवार कह्यु , कहीने (ते देव) जे दिशाथी आव्यो हतो ते दिशा तरफ गयो. ३. त्यार बाद ते देवे ए प्रमाणे कयुं एटले आजीविकोपासक सद्दालपुत्रने आ आवा प्रकारनो अध्यवसाय थयो-ए प्रमाणे होवाथी अविद्यमान छे रह-एकान्त जेने ते 'अरहाः' जेने एकान्त-छानुं नथी एवा, रागादिनो जय करनार होवाथी जिन, केवलपरिपूर्ण, शुद्ध अथवा अनन्त शानादि जेने छे ते केवली, अतीतादिनुं ज्ञान छतां सर्व ज्ञान प्रति शंका थाय माटे सर्वक्ष-सर्वने विशे. षपणे जाणनार. कारण के तेमने साकार उपयोग छे. 'सर्वदर्शी' अनाकार उपयोगना सामर्थ्यथी सर्वने सामान्यपणे देखनार, तथा 'तेलोक्वहियमहियपूयए' प्रण लोक वासी जन वडे 'अवहितः' सर्व ऐश्वर्यादि. अतिशयना समूहने जोवामां तत्पर मन वडे अत्यन्त हर्ष वडे अने अतिशय कुतूहलथी अनिमेष लोचन वडे जोयेला, 'महियत्ति सेव्यपणे इच्छित, 'पूजितः' पुष्पादिथी पूजायेला पवा. पज बाबतने स्पष्ट करे छे. 'सदेवमनुजासुरम्य' देवसहित मनुष्य अने असुरो जेने विशे छे एवा लोकने पुष्पादि वडे अर्चन करवा योग्य, 'वन्दनीयः' स्तुति वडे वन्दन करवा योग्य, 'सत्करणीयः' सत्कार करवा योग्य, आदर करवा योग्य, 'सन्माननीयः' अभ्युत्थान वगेरे विनय करवा वडे सन्मान करवा योग्य, कल्याण, मंगल अने देव रूप छे एवो बुद्धि वडे. उपासना करवा योग्य, 'तञ्चकम्मसंपयासंपउत्ते'त्ति.तथ्य-अवश्य सफल होवाथी सत्य फळ कर्मोनी सम्पत्ति वडे युक्त एवा प्रकारना छे..

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