Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 140
________________ उपासक दशांग सानुवाद वा ॥१४॥ सेसि वा जाव ववरोवेसि, तो जं वदसि नस्थि उहाणे इ वा जाव नियया सव्वभावा तं ते मिच्छा । एत्थ णं | से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए सम्बुद्धे । ७ सद्दालपुत्र अध्ययन ८. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वन्दित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'इच्छामि णं भन्ते ! तुझ अन्तिए धम्मं निसामेत्तए'। तए णं समणं भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स | ॥१४॥ आजीविओवासगस्स तीसे य जाव धम्म परिकहेइ । तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्मं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ० जाव हियए जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । | नवरं एगा हिरण्णकोडी निहाणपउत्ता, एगा हिरण्णकोडी बुड्डिपउत्ता, एगा हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता, यावत् जीवितथी मुक्त करे तो तुं जे कहे छे के 'उत्थान नथी, यावत् सर्व भावो नियत छे ते मिथ्या छे. अहीं आजीविकोपासक सद्दाल पुत्र बोध पाम्यो. ८. त्यार बाद आजीविकोपासक सद्दालपुत्र श्रमण भगवंत महावीरने वंदन नमस्कार करे छे. वंदन नमस्कार करीने तेणे आ प्र-2) माणे कडं-हे भगवन् ! तमारी पासे धर्म श्रवण करवाने इच्छु छु. ते पछी श्रमग भगवान महावीरे आजीविकोपासक सद्दालपुत्रने अने ते मोटी परिषदने यावत् धर्म कह्यो. त्यार बाद आजीविकोपासक सद्दालपुत्र श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्म सांभळी अवधारी हृष्ट-प्रसन्न अने संतुष्ट चित्तवाळो थई आनन्दनी पेठे ते प्रमाणे गृहस्थ धर्मनो स्वीकार करे छे. परन्तु तेणे एक हिरण्यकोटि निधानमां, एक हिरण्यकोटि व्याजे अने एक हिरण्यकोटि धनधन्यादिना विस्तारमा राखेली छे. दस हजार गायोगें एक बज छे.

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