Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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उपासकदशांग सानुवाद
मद्दालपुत्र अध्ययन
॥१३॥
१३१॥
विहरइ । तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एगे देवे अन्तियं पाउभवित्था । तए णं से देवे अन्तलिक्खपडिवन्ने सखिखिणियाइं जाव परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी-एहिइणं देवाणुप्पिया ! कल्लं इहं महामाहणे उप्पन्नणाणदंसणधरे तीयपटुपन्नमणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कवहियमहियपूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे वन्दणिज्जे सक्कारणिज्जे संमाणणिज्जे कल्लाणं मङ्गलं देवयं चेइयं जाव पज्जुवासणिज्जे तच्चकम्मसम्पयासम्पउत्ते, तं णं तुम वन्देजाहि, जाव आवीने मंखलिपुत्र गोशालकनी पासे धर्मप्रज्ञप्तिनो स्वीकार करीने विहरे छे. ते पछी आजीविकोपासक सद्दालपुत्रनी पासे एक देव आव्यो, अने घुघरीओ सहित श्रेष्ठ वस्त्र जेणे पहेरेला छे एवा ते देवे 'अंतरीक्षप्रतिपन्नः' आकाशमा रही आजीविकोपासक सद्दालपुत्रने आ प्रमाणे कडं-हे देवानुप्रिय ! आवती काले अहीं महामाहग, उत्पन्न थपेला ज्ञान अने दर्शनने धारण करनारा, अतीत, वर्तमान अने भविष्यने जाणनारा, अरिहंत, जिन, केवली, सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी त्रण लोक वडे अवलोकित, महित-स्तुति करायेला अने पूजित, देव, मनुष्य अने असुर सहित लोकने अर्चनीय, वन्दनीय, सत्कार करवा योग्य, सन्मान करवा योग्य, कल्याग, मंगल, देव अने चैत्यनी पेठे उपासना करवा योग्य, सत्य कर्मनी संपत्तियुक्त एवा (पुरुष) आवशे, माटे तुं वंदन करजे, यावत् पर्युजीवनी हिंसाथी निवृत्त थयेल होवाथी महामाहन कहेवाय छे. पटले आ नगरमां महामाहन आवशे. 'उप्पन्ननाणदसणधरे उत्पन्न-आवरणना क्षयथी प्रगट थयेल ज्ञान अने दर्शनने धारण करनार, अने एथीज 'अतीतप्रत्युत्पन्नागतज्ञायकः' अतीत-भूत, प्रत्युत्पन्न-वर्तमान अने अनागत-भविष्य काळने जाणनार, 'अरहति अशोक वृक्षादि महाप्रातिहार्यरूप पूजाने योग्य होवाथो अर्हन् , अथवा सर्वज्ञ

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