Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 135
________________ उपासकदशांग सानुवाद सद्दालपुत्र अध्ययन ॥१३५॥ ॥१३५॥ उभविस्था। तए णं से देवे अन्तलिकग्वपडिवन्ने एवं बयासी-हं भो सद्दालपुत्ता!तं चेव सव्वं जाव पज्जुवासि-1 स्सामि' । से नृणं सहालपुत्ता ! अढे समझे ? हंता अस्थि । नो खलु सदालपुत्ता ! तेणं देवेगं गोसालं मङ्खलिपुत्तं पगिहाय एवं वुत्ते । तए णं तस्स सहालपुत्तस्स आजीविओवासयस्म समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ४-'एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पन्नणाणसणधरे जाव तच्चकम्मसम्पयासम्पउत्ते, तं सेयं खलु ममं समणं भगवं महावीरं वन्दित्ता नमंसित्ता पाडिहारिएणं पीढफलग जाव उवनिमन्तित्तए' एवं सम्पेहेइ, संपेहित्ता उहाए उद्देइ, उढेत्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वन्दित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'एवं ग्वलु भन्ते ! ममं पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पञ्च कुम्भकादेवे आकाशमा रही आ प्रमाणे का-हे सद्दालपुत्र ! (काले आ नगरमा महामाहण आवशे) इत्यादि बधु कहे, यावत् (तने विचार थयो के) 'हुँ सेवा करीश.' सद्दालपुत्र ! खरेखर आ अर्थ युक्त छे ? (सद्दालपुत्रे कयु) हा, छे. परन्तु हे सद्दालपुत्र ! ते देवे मंखलिपुत्र गोशालकने उद्देशीने ए प्रमाणे कर्तुं न होतुं. त्यार पछी आजीविकोपासक सद्दालपुत्रने श्रमग भगवंत महावीरे एम कयुं एटले आवा प्रकारनो आ अध्यवसाय थयो-आ श्रमण भगवंत महावीर महामाहण, उत्पन्न थयेल ज्ञान-दर्शनने धारण करनारा, यावत् सत्य कर्मनी संपत्तियुक्त छे, ते माटे मारे श्रमण भगवंत महावीरने वंदन नमस्कार करीने प्रातिहारिक ( पाछा आपका योग्य ) पीठ-आसन, फलक-इत्यादि वडे निमन्त्रण करवू श्रेय-योग्य छे' एम विचार करे छे. एम विचार करीने प्रयत्न वडे उठे छे, उठीने श्रमण भगवंत महावीरने वन्दन नमस्कार करे छे, वंदन नमस्कार करीने तेणे एम कह्यु-हे भगवन् ! खरेखर पोलासपुर नगरनी बहार मारा

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