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उपासकदशांग
सानुवाद
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सुखो कहे छे (२). नरक, तिर्येच, मनुष्यभाव, देवलोक, सिद्धि, सिद्धिस्थान अने छ जीवनिकायने कहे छे (३). जे प्रकारे जीवो बंधाय छे मूकाय. छे, कलेश पामे छे अने प्रतिबंध विनाना जेम दुःखोनो अन्त करे छे ते कहे छे. (४). जे प्रकारे आर्त अने आर्तचित्तवाळा जीवो दुःखसागरने प्राप्त थाय छे अने जे प्रकारे वैराग्यने प्राप्त थयेला कर्मरूपी समुद्गक पेटीने उघाडे छे, आर्त-शरीरथी दुःखी थयेला, आर्तचित्त वाळा - शोकादिथी पीडित थयेला, अथवा आर्तध्यानथी पीडित थयेला मनवाळा जाणवा (५). जे प्रकारे रागथी ( अने द्वेषथी) करेलां कर्मनो फलविपाक प्राप्त थाय छे अने जे प्रकारे क्षीण करेलां छे कर्म जेणे पवा सिद्धो सिद्धालयने प्राप्त थाय छे ते कहे छे. (६) हवे आचरण करवा योग्यनुं आचरण रूप धर्म बतावे छे ते धर्म बे प्रकारनो छे के जे धर्म वडे सिद्धो सिद्धालयने प्राप्त करे छे. ते आ प्रमाणे- आगारधर्म अने अनगारधर्म अनगारधर्म सर्वथा सर्व धन धान्यादि प्रकारने आश्रयी सर्व आत्म परिणाम वडे गृहस्थावासथी अनगारिता - साधुपणाने प्राप्त थयेलाने सर्वथा प्राणतिपातथी विरमण, प प्रमाणे मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह अने रात्रिभोजनथी विरमण करवा रूप जाणवो. हे आयुष्मन् ! आ अनगारसामायिक धर्म कह्यो छे. ए धर्मनी शिक्षा-समज अने आचरण करवामां तत्पर थयेला निर्ग्रन्थ-अने निर्ग्रन्थी- साध्वी विहरता आज्ञाना आराधक थाय छे. अगारधर्म- गृहस्थधर्म बार प्रकारनो कहेलो छे. ते आ प्रमाणे पांच अणुव्रत, त्रण गुणव्रत अने चार शिक्षाव्रत. पांच अणुव्रत आ प्रमाणे छे -१ स्थूल प्राणातिपातथी विरमण, २ एम स्थूल मृषावादथी विरमण, ३ स्थूल अदत्तादानथी विरमण, ४ स्वदारसंतोष अने ५ इच्छापरिमाण. त्रण गुणवत आ प्रमाणे छे-१ अनर्थदंडविरमण, २ दिशावत अने ३ उपभोगपरिभोगपरिमाण. चार शिक्षाव्रत छे, ते आ प्रमाणे- १ सामायिक, २ देशावकाशिक, ३ पोषधोपवास अने ४ अतिथिसंविभाग. त्यारबाद अपश्चिममारणान्तिकसंलेखना - शरीर अने कषायादिने कृश करनार तप विशेषनुं जुषणाऽऽराधना, पटले सौथी छेल्ले मरणान्ते संलेखना - तपविशेषनुं जुषणा सेवन करयुं पांच अणुव्रतना उपकारक व्रत कहेवाय छे अने जे शिक्षा पुनः पुनः आचरवा योग्य ते शिक्षाव्रत कहेवाय छे. हे आयुष्मन् ! आ आगारसामायिक धर्म कह्यो छे. आ धर्मनी शिक्षा समज अने आचरणमां तत्पर थयेल श्रावक अने श्राविका विहरता आज्ञाना आराधक थाय छे.
२ कामदे
वाध्ययन
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