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उपासक
दशांग सानुवाद
॥१२२॥
धम्मपण्णत्ती, नथि उठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इवा, नियया सव्वभावा,
६ कुंडकोमंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती, अत्थि उहाणे इ वा, कम्मे इ वा, बले इ वा वीरिए
लिक अइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा, अणियया सव्वभावा।
ध्ययन. (नियतिने आश्रित) छे. श्रमण भगवंत महावीरनी धर्म प्रज्ञप्ति मंगुली-खराब छे. (कारण के तेमना मते) उत्थान, यावत् पुरुष
॥१२२॥ कार-पराक्रम छे. सर्व भावो अनियत छ (नियतिने आश्रित नथी). दृषित करवा माटे बे विकल्प करे छे-'तुमे ण ' इत्यादि. पूर्वना वाक्यमा 'यदि जो-ए पदनुं ग्रहण करेलु होवाथी आ वाक्यनी आदिमां 'तदा' तो-ए पदनो अध्याहार जाणवो. तो ते आ दिव्य देवऋद्धि वगेरे गुण शाथी प्राप्त कर्यों ? शं उत्थादि वडे 'उदाहु अथवा उत्थानादि सिवाय ? पटले के तप ब्रह्मचर्य वगेरेना आचरण सिवाय प्राप्त कर्यों ? जो उत्थानादि सिवाय प्राप्त कयों-ए पक्ष | गोशालकना मतनो आश्रय करेलो होवाथी तने संमत छे तो जे जीवोने उत्थानादि-तपश्चर्या वगेरे नथी ते जीवो देवो केम नथी? पूछनारनो आ अभिप्राय छे-जेम तारी मान्यताथी तुं पुरुषकार विना देव थयो छे, पण सर्व जीवो जे उत्थानादि विनाना छे ते देवो 10 थवा जोइए, परन्तु प प्रमाणे इष्ट नथी, माटे उत्थानादिनो अपलाप करवाना पक्षमा दूषण छे. अने जो ते आ ऋद्धि उत्थानादि वडे प्राप्त करी छे तो जे तुं कहे छे के 'गोशालकनो मत सुन्दर छे अने महावीरनो मत सुन्दर नथी ते तारं मिथ्या वचन छे, कारण के तेनो व्यभिचार-अन्यथापणुं छे. तेणे पम कां पटले ते देव 'शंकितः' शंकावाळो थयो-शु गोशालकना मत सत्य छे के महाबीरनो मत सत्य छे! कारण के तेणे महावीरनो मत युक्तिथी सिद्ध कयों छे, तेथी आवा प्रकारना विकल्पवाळो थयो. 'कांक्षितः' महाबीरनो मत पण सारो छे, कारण के युक्तियुक्त छे' आवा प्रकारना विकल्पवाळो थयो. यावत् शब्दना कथनथी 'भेदमापन्नः' | 00) मतिमेदने प्राप्त थयो. कारण के 'गोशालकनो मत ज सारो छ प निश्चयथी रहित थयो छे. तथा 'कलुषं समापन्नः' पूर्वना निश्च-14