Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 117
________________ उपासक दशांग सानुवाद ५ चुल्लशतकाध्ययन ॥११७॥ ॥११७॥ XXXXXXXXXXXXXXXX ३. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ । तए णं से देवे चुल्ल- सयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासित्ता दोचम्पि तच्चम्पि तहेव भणइ जाव ववरोविजसि । तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोचम्पि तचंपि एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए ४'अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जहा चुलणीपिया तहा चिन्तेइ जाव कणीयसं जाव आयञ्चइ । जाओऽवि य णं इमाओ मम छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ बुड्डिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ ताओऽवि यण इच्छइ ममं साओ गिहाओ नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिङ्घाडग. जाव विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए'त्तिकट्ठ उद्धाइए जहा सुरादेवो तहेव भारिया पुच्छइ तहेव कहेइ ५। सेसं जहा चुलणीपि ३. त्यार बाद ते चुल्लशतक श्रमणोपासक ते देवे एम कयु एटले निर्भय थइने रहे छे. त्यार पछी ते देव चुल्लशतक श्रमणोपासकने निर्भय रहेलो यावत् जोइने बीजी वार अने त्रीजी वार पण एम ज कहे छे के यावत् तुं जीवितथी मुक्त थइश. ते देवे बीजी वार अने त्रीजी वार ए प्रमाणे को एटले चुल्लशतक श्रमणोपासकने आ आवा प्रकारनो संकल्प थयो–'अहो आ पुरुष अनार्य छे-इत्यादि चुलनीपितानी जेम चिंतवे छे, यावत् नाना पुत्रनो घात करीने तेना रुधिर अने मांस बडे मारा शरीरने छोटे छे अने वळी जे * छ हिरण्यकोटि निधानमा मूकेली, छ व्याजे मूकेली अने छ धनादि विस्तारमा रोकेली छे तेने पण मारा पोताना घरथी लइने आलभिका नगरीना शृंगाटक वगेरे मार्गमां चारे तरफ ज्यां त्यां फेंकी देवाने इच्छे छे, माटे मारे ए पुरुषने पकडवो योग्य छ | एम विचारी तेने पकडवाने ते दोडयो-इत्यादि यावत् सुरादेवनी जेम तेनी भार्या पूछे छे अने ते तेमज कहे छे. बाकी बधं चुलनी

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