Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 112
________________ उपासक दशांग सानुवाद. ४ सुरादेव ध्ययन ॥११२॥ ॥११२॥ तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं चउत्थंपि एवं वयासी-हं भो सुरादेवा ! समणोवासया! अपत्थिपत्थया ४ जावन परिचयसि तो ते अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायले पक्खिवामि, तंजहा-सासे, कासे, जाव कोढे, जहा णं तुम अदृदुहद्द० जाव ववरोविजसि । तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाव विहरइ । एवं | देवो दोचंपि तचंपि भणइ जाव ववरोविजसि ३. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोचंपि तचंपि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे चुलनीपितानी जेम जाणवू. परन्तु अहीं एक एकना पांच टुकडा समजवा. त्यारपछी ते देवे सुरादेव श्रमणोपासकने चोथी वार पण आ प्रमाणे कयु-अप्रार्थित (मरण)नी प्रार्थना करनार हे सुरादेव श्रमणोपासक ! जो तुं शील वगेरेनो त्याग नहि करे तो आजे तारा शरीरमा एक साथे सोळ रोगो मूकीश. ते आ प्रमाणे-श्वास, कास-खांसी, यावत् कोढ. जे प्रकारे तुं आर्तध्याननी अत्यन्त परवशताथी पीडित थइ अकाळे ज जीवितथी मुक्त थइश. त्यार पछी ते सुरादेव श्रमणोपासक यावद् निर्भय रहे छे. ए प्रमाणे देव बीजी वार अने त्रीजी वार पण कहे छे के यावत् तुं जीवितथी मुक्त थइश. ३. त्यार बाद ते देवे बे वार अने त्रण वार ए प्रमाणे कडं एटले ते सुरादेव श्रमणोपासकने आ आवा प्रकारनो अध्यवसाय१० मूर्धशूल-मस्तकनुं शूल, ११ अकारक-अरोचकपणुं, १२ अक्षिवेदना-आंखनी पीडा, १३ कर्णवेदना, १४ कंडू-खरज १५ उदररोग अने १६ कोढ. उपासकदशाना चोथा अध्ययननो टीकानुवाद समाप्त.

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