Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन ॥५६॥ ॥५६॥ |स्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिसहनारायसङ्घयणे कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे घोरतवे महातवे उराले घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबम्भचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियं अचवलं असम्भन्ते मुहपत्तिं पडिलेहेइ,२त्ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ,२त्ता भायणवत्थाई पमन्जइ,२त्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेवसमणे भगवं महावीरेतेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'इच्छामि णं भन्ते ! तुन्भेहिं अन्भणुण्णाए छट्ठक्खमणपारणगंसि वाणियगामे ते समये श्रमण भगवंत महावीरना ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम गोत्रीय, सात हाथ ऊंचा, समचतुरस्र संस्थानवाळा, वज्रऋषभनाराच संघयणयुक्त सुवर्णना कसोटी उपरना कष जेवा, पद्मनासमान गौरवर्णवाळा, उग्र तपवाळा, तेजस्वी तपवाळा, तपस्वी, घोर तप वाळा, महातपस्वी, उदार, घोर गुणवाळा, घोर तपस्वी घोर ब्रह्मचारी, जेणे शरीरना ममत्वनो त्याग कर्यो छे एवा, संक्षिप्त अने विपुल तेजोलेश्यावाळा इन्द्रभूति नामे अनगार निरन्तर छट्ठ छट्ठना तप करवा वडे, संयम अने तप वडे आत्माने भावित करता विहरे छे. त्यार पछी भगवान् गौतम छट्ठ क्षपणना | पारणाने दिवसे प्रथम पौरुषीने विशे स्वाध्याय करे छे, बीजी पौरुषीए ध्यान करे छे, त्रीजी पौरुषीए त्वरा अने चपलता सिवाय संभ्रम | रहित मुहपत्तिनुं प्रतिलेखन करे छे, प्रतिलेखन करी पात्र अने वस्त्रोनुं प्रतिलेखन करे छे. प्रतिलेखन करी पात्र अने वस्त्रोने प्रमार्जे छे, प्रमार्जी पात्रो ग्रहण करे छे. ग्रहण करी ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवान् महावीरने वंदन

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184