Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 34
________________ उपासकदशांग सानुवाद १आनंदाध्ययन ॥३४॥ ॥३४॥ याराजाणियब्वा, न समायरियव्वा। तंजहा-अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहियसिज्जासंथारे, अप्पमज्जियदुप्पमज्जियचार जाणवा, पण आचरवा नहि. ते आ प्रमाणे-१ अप्रत्युपेक्षितदुष्प्रत्युपेक्षितशय्यासंस्तारक-शय्या-वसति अने कंबलादि संथारानु प्रतिलेखन-निरीक्षण न करवू अथवा सारी रीते प्रतिलेखन न करवू, २ अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जितशय्यासंतारक-वसति अने संस्ताव्यापार, प्रवृत्ति. जेणे सामायिक कर्यु छे तेणे घरना कार्य संबन्धी सारा खोटानो विचार करवो, २ 'वयदुप्पणिहाणे' वचःदुष्प्रणिधान-जेणे सामायिक कर्यु छ तेणे निष्ठुर अने सावद्य वचन बोलवु. ३ 'कायदुप्पणिहाणे' कायदुष्प्रणिधान-काय-शरीरनी दुष्ट प्रवृत्ति, जेणे सामायिक कर्यु छे तेणे नहि जोयेली अने नहि प्रमाली भूमि वगेरेने विशे शरीरना हाथ पग वगेरे चपलपणे मूकवा. ४ 'सामाइयस्स सइ अकरणया' सामायिकनी स्मृति-'मारे आ समये सामायिक करवानुं छे' एवं स्मरण प्रबळ प्रमाद वडे न करवू. | ५ 'अणवट्टियरस करणया' अल्प काळचं अथवा अनियत सामायिकनुं करवं. थोडो काळ सामायिक कर्या पछी तेनो त्याग करवो अथवा | जेमतेम सामायिक करवू ए भावार्थ छे. प्रथमना पण अतिचारो अनाभोगादि चढे अतिचार रूप छे अने पछीना बे अतिचारो प्रमादनी अधिकताथी अतिचार रूप छे. ___ 'देसावगासियस्स'त्ति । देश-दिशावतमा ग्रहण करेल दिशाना परिमाणनो एक देश, तेने विशे अवकाश-गमनादि चेष्टानुं स्थान ते देशावकाश, ते बडे निवृत्त-थयेलं ते 'देशावकाशिक व्रत-पूर्वे ग्रहण करेल दिशावतना संक्षेप करवा रूप अने उपलक्षणथी सर्व १. दिशावत विशेष एज देशावकाशिक व्रत छे. विशेषता आ छे के दिशावत यावज्जीब, बरस के चार मासना परिमाणवाळु होय छे भने देशावकाशिक व्रत दिवस पहोर के मुहूर्तादिना परिमाणवाळु होय छे. तेना पांच अतिचारो छे-प्रेष्य प्रयोग-प्रेष्य-आदेश करवा योग्य पुत्रादिने प्रयोग-विवक्षित क्षेत्रनी बहार काम माटे मोकलवा. पोते स्वयं जाय तो व्रतनो भंग थाय माटे प्रत सापेक्ष होवाथी अतिचार छे. देशायकाशिक प्रत गमनागमनादिनी प्रवृत्ति बडे प्राणीनी हिंसा न थाय ए हेतुथी ग्रहण कराय छे, परन्तु स्वयं करे के बीजा पासे करावे तेमां फळनी दृष्टिथी विशेषता नथी, उलटुं स्वयं जाय तो इर्यासमितिनी विशुबिधी गुण थाय, XXEEEEEEEEEXXXXX

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