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उपासकदशांग सानुवाद
१ आनंदा ध्ययन
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७. तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावयधम्म पडिवजइ, पडिवजित्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वदित्ता नमंसित्ता एवं | वयासी-'नो खलु मे भन्ते ! कप्पइ अजप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि अरिहन्तचेइयाणि वा वन्दित्तए वा नमंसित्तए वा, पुटिव अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा,*
७. त्यार बाद ते आनन्द गृहपति श्रमण भगवंत महावीरनी पासे पांच अणुव्रत अने सात शिक्षा व्रत रूप बार प्रकारना श्रावक | धर्मनो स्वीकार करे छे. स्वीकारीने श्रमण भगवंत महावीरने वंदन अने नमस्कार करे छे, वंदन अने नमस्कार करी तेणे ए प्रमाणे कडं-'हे भगवन् ! आजथी आरंभी मारे अन्यतीथिकोने, अन्य तीथिकोना देवने, अन्यतीथिकोए ग्रहण करेला अरिहंतना चैत्योने | वंदन अने नमस्कार करवो तथा पूर्व तेओ न बोल्या होय तो तेनी साथे आलाप-एक वार बोलवु अने संलाप-वातचीत करवी तथा तेओने अशन, पान, खादिम अने स्वादिम (भक्तिपूर्वक)आपवू, वारंवार आपq ते राजाभियोग-राजानी अधीनता, गणाप्रवर्ते छे. ४ मरणाशंसाप्रयोग-आवा प्रकारनो सत्कार न थतो होय तो आवो विचार करे के 'जो हुं जल्दी मरूं तो सारं' ए प्रमाणे | मरणनी इच्छा करवी. ५ कामभोगाशंसाप्रयोग-'जो मने मनुष्य संबन्धी के देव संबन्धी कामभोगो प्राप्त थाय तो सारूं' ए प्रमाणे कामभोगनी इच्छा करवी.
७. त्यार पड़ी आनन्द श्रावके भगवंत महावीरनी पासे पांच अणुव्रत अने सात शिक्षाव्रत रूप बार इतनो स्वीकार करी, भगवंत महावीरने वंदन करी आ प्रमाणे कां-'नो खलु' इत्यादि हे भगवन् ! 'अद्यप्रभृति' आजथी-सम्यक्त्वना अंगीकार कर्याना दिवसथी मांडी निरतिचार सम्यक्त्वनुं पालन करवा माटे तेनी यतनाने आश्रयी 'अन्नउत्थिप वा' जैनयूथथी अन्य यूथ-संघ, तीर्थ, ते जेओने