Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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१ आनंदा
उपासकदशांग सानुवाद
SEXEBSIX
ध्ययन
॥१५॥
॥१५॥
वेण वा मुग्गमाससूवेण वा, अवसेसं सूवविहिंपचक्खामि'३ । तयाणन्तरं च णं घयविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ सारइएणं गोघयमण्डेणं, अवसेसं घयविहिं पञ्चक्वामि' ३। तयाणन्तरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ चुच्चूसाएण वा सुत्थियसाएण वा मण्डुक्कियसाएण वा, अवसेसं सागविहिं पञ्चक्खामि' ३। तयाणन्तरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ एगेणं पालङ्गामाहुरएणं, अवसेसं माहुरयविहिं पच्चक्खामि'३ । तयाणन्तरं च णं जेमणविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ सेहंबदालियंबेहिं, अवसेसं जेमणविहिं पञ्चक्खामि' ३ । तयाणन्तरंच सूपविधि-दाळनो त्याग करूं . त्यार बाद घृतविधिनु परिमाण करे छे. एक शरद ऋतुना गायना घृतमंड-सारभूत घी सिवाय बाकीना घृतविधिनो त्याग करुं छं. त्यार पछी शाकविधिनुं परिमाण करे छे. 'एक चुच्चू शाक, स्वस्तिक अने मंडूकिका शाक सिवाय बाकीना शाकनो त्याग करूं छु.' त्यार बाद माधुरक-मधुर रसना पीणानी विधिनुं परिमाण करे छे. पालंकना मधुर रसना पीणा तेना परिमाणमां 'कट्ठपेय'त्ति काष्टपेया-मग वगेरेनो यूष अथवा घी वडे तळेला तंदुलनी पेया जाणवी. भक्ष्यविधिना परिमाणमां | 'भक्ख'त्ति भक्ष्य शब्द कठण अने विशद आहार योग्य द्रव्यमां रूढ छे, परन्तु अहीं पकवान मात्र विवक्षित छे. 'घयपुण्ण'त्ति घृतपूर-1 घेबर प्रसिद्ध छे. 'खण्डखजत्ति जेनी उपर खांड चडावी होय पवा खाद्य-अशोकवति-मरकी अथवा खाजा जाणवा. ओदननी विधिना परिमाणमा 'ओदण'त्ति कूर-चोखा, कलमना चोखा, जे पूर्वदेशमां प्रसिद्ध छे. सूपमा सूप-कूर-दाळy बीजुं भोजन प्रसिद्ध छे, 164) 'कलायसुवेत्ति कलाय-चणानी आकृतिवाळू धान्यविशेष एटले वटाणा, तेनो सूप, मुद्ग-मग, माष-अडद प्रसिद्ध छे. घृतविधिना परिमाणमा 'सारइपण गोघयमंडेणं' शारदिक-शरद् ऋतुमा थयेलुं गोघृतमंड-श्रेष्ठ गायनुं घी जाणवू. शाकनी विधिना परिमाणमा अहीं वत्थुलादि शाक जाणवा, चुचू शाक, सौवस्तिक अने मंडूकिका शाक लोकप्रसिद्ध जाणवा. 'माहुरय 'त्ति माधुरक-खाटु नहि एवं

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