Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 13
________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन ॥१३॥ ॥१३॥ करेइ, 'नन्नत्थ अगुरुकुंकुमचन्दणमादिएहिं, अवसेसं विलेवणविहिं पच्चक्खामि'३। तयाणन्तरं च णं पुप्फविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ एगेणं सुद्धपउमेणं मालइकुसुमदामेणं वा, अवसेसं पुप्फविहिं पचक्खामि ३ । तयाणन्तरं च णं आभरणविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ मट्ठकपणेजएहिं नाममुद्दाए य, अवसेसं आभरणविहिं पञ्चक्वामि' ३।तयाणन्तरं च णं धूवणविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ अगरुतुरुक्कधूवमादिएहिं, अवसेसं धूवणविहिं पञ्चक्खामि'३ । तयाणन्तरं च णं भोयणविहिपरिमाणं करेमाणे पेजविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ एगाए कट्टपेज्जाए, अवपद्म अने मालतीना पुष्पोनी माळा सिवाय बाकीना पुष्पविधिनो त्याग करूं छु. त्यार पछी आभरण विधिनुं परिमाण करे छे. मृष्टकोमळ काणेयक-कानना आमरण अने नामवाळी मुद्रिका सिवाय बाकीना अलंकारोनो त्याग करु छु. त्यार पछी धूपविधिनु परिमाण करे छे. अगर अने तुरुष्क-शिलारसना धूप वगेरे सिवाय बाकीना धूपविधिनो त्याग करुं छं. तेना पछी भोजनविधिनुं परिमाण करतो एणं' गंध-उपल, कुष्ठ विगेरे सुगंधी द्रव्योना अट्टक-चूर्ण अथवा घउना लोटना सुगंधी चूर्ण सिवाय बीजा उद्वर्तननुं प्रत्याख्यान करे छे. उट्टिपहिं उदगस्स घडपहिं' उष्ट्रिका-मोटुं माटीनुं पाणी भरवानुं वासण, तेने भरवामा प्रयोजन जेनुं छे एथा, उचित प्रमाणवाळा अत्यन्त नाना नहि तेम मोटा नहि एवा पाणीना आठ घडा सिवाय वधारे पाणीथी स्नानविधिनो त्याग करे छे. अहीं बधे 'अन्नत्थ' अन्यत्र-शब्दनो प्रयोग होवा छतां पंचमीना अर्थमां तृतीया विभक्ति जाणवी. वस्त्रनी विधिना परिमाणमा 'खोमजुयलेणं' 'क्षौमयुगल १ क्षौमयुगलनो टीकाकार कार्यासिक-सुतराउ वस्त्रयुगल एवो अर्थ करे' छे, परन्तु हेमचंद्राचार्य अभिधानचिंतामणिमा "क्षौमं दुकूलं दुगूलं स्यात् कासि तु | बादरम्" । का० ३ लो० ३३३. तेनी स्वोपज्ञ टीकामां शुमा-अतसी, तस्या विकारः क्षौमम् , क्षौमने दुकूल कहे छे. अने ते अळसीनुं बने छे" तेम जणावे छे. *EEXXEEEK

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