Book Title: Upasakdashanga Sutra
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Abhaydevsuri
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उपासकदशांग सानुवाद
१ आनंदाध्ययन
॥१२॥
॥१२॥
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तेल्लेहिं, अवसेसं अब्भङ्गणविहिं पच्चक्खामि' ३ । तयाणन्तरं च णं उव्वदृणाविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ एगेणं सुरहिणा गन्धट्टएणं, अवसेसं उव्वदृणाविहिंपच्चक्खामि'३। तयाणन्तरं च णं मजणविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ अट्टहिं उहिएहिं उदगस्स घडएहिं, अवसेसं मजणविहिं पच्चक्खामि'३ । तयाणन्तां च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ एगेणं खोमजुयलेणं, अवसेसं वत्थविहिं पच्चक्खामि'३। तयाणन्तरं च णं विलेवणविहिपरिमाणं | उद्वर्तनाविधिनुं परिमाण करे छे. एक सुगंधी गन्धचूर्ण सिवाय बाकीना उद्वर्तनाविधिनो त्याग करूं छु. त्यार पछी मजन-स्नाननी | विधिनुं परिमाण करे छ, आठ औष्ट्रिक घडा पाणी सिवाय वधारे पाणी वडे स्नान करवानो त्याग करुं छु. त्यार बाद वस्त्रनी विधिनुं | परिमाण करे छे. एक क्षौमयुगल (बे सुतराउ वस्त्रो) सिवाय बाकीना वस्त्रोनो त्याग करुं छ. त्यार पछी विलेपनविधिनु परिमाण करे छ, अगर, कुंकुम केसर अने चंदनादि सिवाय बाकीना विलेपननो त्याग करूं छु. त्यार पछी पुष्पविधिनुं परिमाण करे छे. एक शुद्ध जेमां सुगंध प्रधान छे एबुं रातुं वस्त्र ते गन्धकाषायी कहेवाय छे. ते सिवाय बीजा उल्लुणिया-अंगुछानो त्याग करे छे. 'दंतवणत्ति दन्ताः पूयन्ते अनेन-दांत स्वच्छ कराय जे वडे ते देन्तपवन-दांतना मेलने दूर करनार काष्ठ-दातण, तेना परिमाणमां 'अल्ललट्ठीम| हुपण आर्द्र-लीला 'यष्टिमधु' जेठीमधना दातण सिवाय बीजा दातणनो त्याग करे छे. फळ विधिना परिमाणमां 'खीरामलपणं जेमा ठळीयो बंधायो नथी पवा अथवा क्षीर-दूधनी पेठे मधुर रसवाळा आमलक-आमळा सिवाय बीजा फळनो त्याग करे छे. 'सयपागसहस्सपागेहिं' सो औषधीद्रब्यना सो क्वाथ बडे जे पकावाय ते अथवा सो कार्षापणना मूल्यवडे जे पकावाय ते शतपाक, ए प्रमाणे सहस्रपाक तैल पण जाणवं. ते सिवाय बीजा तैलना अभ्यंग विधिनु प्रत्याख्यान करे छे. उद्वर्तनविधिना परिमाणमा 'गंधट्ट
१ उंटना जेवी लांबी डोकवाळा घडाने औष्ट्रिक घडा कहेवाता होय तेम संभवे छे.
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