Book Title: Tulsi Prajna 2005 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ है। जैन साधकों ने अपनी आत्मा को इतना विस्तृत किया है कि प्रत्येक प्राणी में उन्हें अपने समान ही आत्म तत्त्व के दर्शन हुए हैं। अत: उनका समत्व का विकास इन पाँच व्रतों का मूल आधार है। जो साधक इस गहराई तक उतर कर इनकी साधना करेगा उसके आचरण में वह सब अभिव्यक्त होगा, जिनकी अपेक्षा शास्त्रों के विस्तृत वर्णनों में प्राप्त है। अतः श्रमणधर्म में मोक्ष प्राप्त करने का जो चरित्र को साधन माना गया है, उसका अर्थ है कि ऐसा आचरण जो साधक की आत्मा से प्रकट हो। तभी समत्व का विकास समाज के प्रत्येक प्राणी तक हो सकेगा। सर्वोत्तम जीवन पद्धति सात्विक आहार शाकाहार एक सुविकसित जीवन पद्धति है जिसमें अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य जैसे सात्विक गुणों का महत्व है। इसे छोड़ दुनिया का ऐसा कोई आहार नहीं है जो दूसरों की रक्षा और उसके भरपूर सम्मान में आस्था रखता हो। सम्भव है जब तक मनुष्य ने खेत-खलिहान और बीज वृक्ष के रहस्य को न जाना हो तब तक शिकार पर निर्भर रहा हो और सामिष आहार लेता रहा हो किन्तु जैसे-जैसे वह विकसित होता गया, उसका सांस्कृतिक अभ्युत्थान होता गया, उसके जीवन में हिंसा की अपेक्षा अहिंसा का और क्रूरता की जगह करुणा का आदर बढ़ गया। अहिंसा मनुष्य की सर्वोत्तम उपलब्धि है। वह उसके साभ्यतिक और सांस्कृतिक विकास का सर्वोत्तम शिखर है। मांसाहार और अहिंसा दोनों समान्तर चले, यह सम्भव नहीं है। वस्तुत: शाकाहार और अहिंसा ही कदम मिलाकर चल सकते हैं। जब हम आध्यात्मिक दृष्टि से शाकाहार पर विचार करते हैं तब हमारा ध्यान उस सूक्ति पर जाता है, जिसमें कहा गया है कि दुनिया के सारे जीवधारी आत्मवत् है। आत्मवत् सर्वभूतेषु - यदि संसार के सभी प्राणी आत्मवत् हैं तो हमें इस आत्मवत्ता का सम्मान करना चाहिए। जो देश पेड़, पौधों की धड़कन को प्रणाम करता रहा हो तथा अतीत में समृद्ध रहा हो, उसमें यदि कभी दूध की नदियां बही हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अहिंसा हमारे विकास का अपरिहार्य सुफल है, अतः जब भी हम उसके आंचल की छाया छोड़ेंगे, हमें विकट विपदाओं का सामना करना पड़ेगा। पर्यावरण के प्रदूषण होने की समस्या हिंसा से जुड़ी हुई है। अहिंसा प्रदूषण मुक्ति का सर्वोत्तम उपाय है। शाकाहार के साथ जीवन मूल्यों का जितना घनिष्ट संबंध है उतना अन्य किसी आहार के साथ नहीं है, इसलिये सामाजिक दृष्टि से भी यह आवश्यक है कि सम्पूर्ण तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2005 - 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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