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तदनुकूल शिक्षण का विकास आवश्यक है। परिग्रह-परिमाणवती, श्रावक-समाज का इस दिशा में थोड़े क्षेत्र में ही सही, आदर्श निदर्शन बन सकता है।
_भ्रष्टाचार की समस्या पुरातन से चली आ रही है। बिना श्रम के धन अर्जित करने की लालसा ही इसका मूल कारण प्रतीत होती है। व्रती व्यक्ति इस प्रकार की लालसा से रहित होकर भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण प्रदान कर सकता है।
धन या सत्ता की प्राप्ति आतंकवाद का मुख्य हेतु है। परिग्रह-परिमाणव्रती स्वयं इससे मुक्त रहता है, किन्तु दूसरों के लिए भी प्रेरक कारण नहीं बनता है।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या प्राकृतिक सम्पदा के शोषण और उसके रासायनिक परिवर्तन की प्रक्रिया से जुड़ी हुई है। मानव सुख-सुविधा के जितने साधन जुटाता है वह उतना ही प्रदूषण फैलाता है। परिग्रह परिमाण व्रत को यदि व्यापक स्तर पर स्वीकार कर लिया जाए तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर एक सीमा तक नियंत्रण हो सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ : 1. उत्तराध्ययन सूत्र 8.16 2. प्रश्न व्याकरण , 1.5 3. दशवैकालिक 6, 21 4. सूत्रकृ तांग 1.1.1-2
एसोशियट प्रो. संस्कृत विभाग । जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर (राजस्थान)
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तुलसी प्रज्ञा अंक 129
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