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आधुनिक युग में श्रावकाचार का अस्तित्व
डॉ. अनेकांत कुमार जैन
आचार शास्त्र का नाम सुनते ही ऐसा प्रतीत होता है कि यह धर्म की प्रयोगशाला है। हम धर्म पर अच्छा चिंतन कर सकते हैं, व्याख्यान दे सकते हैं, लेख लिख सकते हैं, बड़ी गोष्ठियां करवा सकते हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि यह तमाम कार्य धर्म की व्याख्या कर सकते हैं, उसे धारण नहीं कर सकते। धारयन्ति इति धर्मः जो धारण किया जाये वह धर्म है। इसलिये श्रावकाचार से धर्म प्रारम्भ होता है।
हम सभी परिवर्तन के एक बहुत बड़े दौर से गुजर रहे हैं। यह परिवर्तन सामाजिक या राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं हुआ है बल्कि समूचे विश्व जगत् में है। सामाजिक,धार्मिक और नैतिक मूल्यों में परिवर्तन तो हुआ है, साथ ही साथ जीवन के लक्ष्यों में भी परिवर्तन हुआ है। हम निवृत्ति का शोर मचाते हुए प्रवृत्ति के जाल में उन्हीं तोतों की तरह फंस रहे हैं जो दाना नहीं खायेंगे, नहीं तो शिकारी जाल में फंसा लेगा, कहते-कहते रटते-रटते दाना खाने बैठ जाते हैं और जाल में फंसने के बाद भी यही रटन लगाये रहते हैं । __ आधुनिक युग में श्रावकाचार का अस्तित्व हम सभी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौति है, वह चुनौति इसलिये अधिक बड़ी है, क्योंकि श्रावकाचार एक सीढ़ी है श्रमणाचार या मूलाचार तक पहुँचने की और यदि यह सीढ़ी ही मजबूत नहीं रही तो वे दिन दूर नहीं जब हमें श्रमणाचारी से भी हाथ धोना
पड़ेगा।
बहुत बड़ी समस्या -
आधुनिक जीवन शैली और तौर तरीकों के मध्य हमारा श्रावकाचार कैसे सुरक्षित रहे और क्यों सुरक्षित रहे? यह एक बहुत बड़ी समस्या है। आज के
तुलसी प्रज्ञा जुलाई --दिसम्बर, 2005
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