Book Title: Tulsi Prajna 2005 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 95
________________ सनातन धर्म में भी रात्रि में शुभ कर्म करने का निषेध है। कहा है- समस्त वेदज्ञाता जानते हैं कि सूर्य प्रकाशमय है। उसकी किरणों से समस्त जगत् के पवित्र होने पर ही समस्त शुभकर्म करना चाहिए। रात्रि में न आहुति होती है, न स्नान, न श्राद्ध, न देवार्चन और न दान। ये सब अविहित हैं और भोजन में विशेष रूप से वर्जित हैं। दिन के आठवें भाग में सूर्य का तेज मंद हो जाता है। उसी को रात्रि जानना। रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। देव पूर्वाह्न में, ऋषि मध्याह्न में और पितृगण अपराह्न में भोजन करते हैं। दैत्य-दानव सायाह्न में भोजन करते हैं । यक्ष-राक्षस सदा संध्या में भोजन करते हैं। इन सब बेलाओं को लांघकर रात्रि में भोजन करना अनुचित है। वर्तमान में विवाह आदि अवसरों पर यहां तक कि धार्मिक कार्यक्रमों में भी रात्रि-भोजन बढ़ रहा है जो जैन जीवन शैली के सर्वथा विरुद्ध है तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक है। आज हम अपनी पहचान को खोते जा रहे हैं अतः अपनी अस्मिता को बनाये रखने के लिए हमें रात्रि भोजन की प्रवृत्ति पर संयमन करना आवश्यक है। विभागाध्यक्ष, जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं (राज.) 90 । तुलसी प्रज्ञा अंक 129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org

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