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२९. अतिदीर्घदर्शी, ३०. विशेषज्ञ, ३१. कृतज्ञ, ३२. पोष्यपाषक, ३३. लोकप्रिय, ३४. लज्जावान्, ३५. सौम्य प्रकृतिवान्।
इस प्रकार आचार्य हरिभद्र ने इन ३५ गुणों की श्रावक में आवश्यकता मानी है। इन गुणों में स्वास्थ्य सम्बंधी, आवास सम्बंधी, व्यवहार संबंधी, जीवन संबंधी सामान्य गुणों की चर्चा की है। यही ३५ गुण मार्गानुसारी के पैंतीस गुण के रूप में भी प्रसिद्ध है । आज इन गुणों का विस्मरण हो चुका है। अतः श्रावक जीवन भी अनेक विपदाओं से युक्त हो गया है। एक तरफ आज व्यक्तित्व विकास और पर्सनालिटी डेवलपमेंट के रूप में लोग हजारों रुपयों का खर्च करके इन्ही गुणों का अभ्यास करते हैं जिनको जैन धर्म के आचार्यों ने श्रावक जीवन के आवश्यक गुणों के रूप में स्वीकार किया है। अतः इन गुणों का जीवन में आविष्कार हो, ऐसे प्रयत्न करने से वर्तमान काल में श्रावक जीवन में आई गिरावट को कुछ हद तक पुनः जीवित कर सकते हैं।
20, सुदर्शन सोसाइटी-2 नारायणपुरा अहमदाबाद - 380013
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तुलसी प्रज्ञा अंक 129
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