Book Title: Tulsi Prajna 2005 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ दिया है। केवल व्रत पालन करना ही पर्याप्त न मानकर जीवन को अधिक गुणवान बनाने वाले गुणों की बात करके एक नई क्रान्तिकारी विचारणा प्रस्तुत की है। इन गुणों की सूची प्राकृत भाषामय गाथाओं में निबद्ध की गई है जो बाद में मन्नह जिणाणं सूत्र के नाम से सुप्रसिद्ध हो गई और पर्व दिनों में उसका प्रतिक्रमण में पाठ करना श्रावकों के . लिए आवश्यक माना गया। प्रस्तुत परम्परा आज भी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों में चली आ रही है। उसमें बताए गए गुणों का वर्णन इस प्रकार है पर्व के दिनों में पौषध व्रत करने वाला, दान, शील, तप, भावना, स्वाध्याय, नमस्कार, परोपकार,जयणा युक्त आचरण, जिनेश्वर की स्तुति, गुरु की स्तवना, साधर्मिक बंधुओं के प्रति वात्सल्य भाव, शुद्ध आहार में प्रवृत्त, रथ यात्रा और तीर्थयात्रा करने वाला, उपशम विवेक और संवर का आचरण करने वाला, भाषा समिति का पालन करने वाला, छः काय के जीवों पर करुणाभाव रखने वाला, इन्द्रियों का दमन करने वाला, चारित्र के परिणामों को धारण करने वाला, संघ पर बहुमान धारण करने वाला, पुस्तक लिखने व लिखवाने में प्रवृत्त, जिनशासन की प्रभावना करने वाला, जिनशासन के प्रति अनुरक्त और सुगुरु के विनय में तत्पर, इस प्रकार के गुणों से युक्त श्रावक को श्रावक माना गया है। इसके अतिरिक्त श्रावक के २१ गुणों का वर्णन भी प्राप्त होता है । यथा - क्षुद्रता से रहित, रूपवान, स्वभाव से सौम्य, लोकप्रिय, अक्रूर, भवभीरू, अशठ, दाक्षिण्य गुणों से युक्त, लज्जावान, दयालु, माध्यस्थ, सौम्य दृष्टि वाला, गुणानुरागी, सत्यवचनी, अतिदीर्घदर्शी, विशेषज्ञ, वृद्धों के अनुसार आचरण करने वाला, विनयवान, कृतज्ञ, परहितकारी, लब्धलक्ष्यवाला श्रावक कहलाता है । आचार्य हरिभद्र सूरी ने द्रव्य श्रावक के ३५ गुणों की चर्चा की है जो हरिभद्र सूरी का मौलिक अवदान है और बाद के सभी आचार्यों ने उसी का अनुसरण किया है । यथा - १. न्याय सम्पन्न, २. शिष्टाचार प्रशंसक, ३. समान कुलशील वालों के साथ व्यवहार करने वाला, ४. पापभीरू, ५. देशाचार पालक, ६. अवर्णवाद त्यागी, ७. अतिगुप्तग्रह में न रहने वाला, ८. सत्संग करने वाला, ९. अनेक द्वार वाले घर को त्यागने वाला, १०. सुविहित साधुओं का संग करने वाला, ११. माता पिता का पूजक, १२. उपद्रव वाले स्थान का त्याग करने वाला, १३. निंद्य व्यापार निवर्तक, १४. उचित व्यय करने वाला, १५. उद्भटवेश त्यागी, १६. बुद्धि के आठ गुणों से युक्त, १७. धर्म का श्रवण करने वाला, १८. अवसर अनुसार भोजन करने वाला, १९. संतोषी, २०. दानगुणयुक्त, २१. तीन पुरुषार्थ की साधना करने वाला, २२. पवित्र, २३. कदाग्रह रहित, २४. सद्गुणी, २५. गुणपक्षपाती, २६. देशकालानुसार आचरण करने वाला, २७. बलाबल का ज्ञाता, २८. साधु दीन आदि की भक्ति करने वाला, तुलसी प्रज्ञा जुलाई - दिसम्बर, 2005 Jain Education International For Private & Personal Use Only 19 www.jainelibrary.org

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