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१७. सभी स्वार्थी हैं।
१७. बृहत्तर स्वार्थ ही सच्चा स्वार्थ है। बृहत्तर
स्वार्थ का अर्थ है-ऐसा स्वार्थ जो पदार्थ
का विरोधी नहीं है। १८. अधिक लोगों के सुख के लिए थोड़ों १८. सभी समान है। किसी का सुख किसी का सुख छोड़ा जा सकता है।
दूसरे के सुख के लिए छीना नहीं जा
सकता। १९. भोग की अधिक से अधिक सामग्री १९. वरीयता मनुष्य की प्राथमिक आवबाजार में लानी चाहिए।
श्यकताओं को देनी चाहिए। २०. धन ही सब कुछ है।
२०. ज्ञान, आत्म-सम्मान और सेवा का भी
महत्त्व है। २१. विकास के लिए केन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था २१. कर्मचारियों के संतोष के लिए आवश्यक है।
विकेन्द्रीकरण है।
संयम
प्रचलित अवधारणा
सम्यक् अवधारणा
१. सैक्स का संयम हानिकारक है।
२. सैक्स का नियंत्रण संभव नहीं है।
३. भोग सुख देता है। ४. ब्रह्मचर्य का जीवन दुःखपूर्ण है।
१. अनियन्त्रित सैक्स न केवल शारीरिक रोग
लाता है अपितु मानसिक विक्षिप्तता भी
लाता है। २. सैक्स के नियन्त्रण की एक विधि है,
जिसे जान लेने पर सैक्स का नियन्त्रण
सम्भव है। ३. भोग ऊर्जा का व्यय करता है। ४. अब्रह्म का सेवन हमारा सन्तुलन बिगाड़ता
है। ५. आसक्ति भोगों में भी बाधक है। ६. इच्छा में विवेक करना आवश्यक है। ७. भोग हमारे मनोबल को क्षीण करता है। ८. अतिभोजन रोग का घर है। ९. विलासिता दुर्बल बनाती है।
५. वीतरागता विरसता लाती है। ६. इच्छा की पूर्ति में सुख है। ७. दमन अहितकर है। ८. भोजन शक्ति बढ़ाता है। ९. तप कष्टकर है।
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002
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