Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitrasya Gadyatmaka Saroddhar Part 01
Author(s): Shubhankarsuri, Dharmkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 6
________________ सम्पादकीय "हुं तो नानो माणस छु. छतां मारी आशिष-शुभेच्छा तमारी साथे ज छे. मारी जरूर होय त्यां मने कहेजो. बधुं काम थई जशे. चिंता न करशो. भईला, सारा काममां हमेशा मारी अनुमति ज होय. अहींना मूळनायक श्री धर्मनाथ दादा, ग्रंथना रचयिता कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरि महाराजा तथा आपणा वडील शासनसम्राट श्रीनेमिसूरिदादानुं नाम लईने काम शरू करो. तमो खूब आगळ वधो."-पूज्यपाद गच्छाधिपति श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी गुरुभगवंतना आवा मंगल आशिष साथे शरू थयेल प्रकाशन यात्रानो आ प्रथम पडाव छे. कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यमहाराजा भारतनी एक अद्वितीय विभूति छे. सर्वजन तेमना नाम अने कामथी परिचित छे. छतां एटलं कहुं छु के गुजरातनी संस्कृतिना घडवैया तेओ ज छे. अन्य प्रान्तोनी तुलनामां गुजरातना लोकोमा जे अहिंसा, उदारता, सहिष्णता, विद्यारुचि- इत्यादि जे गुणो जोवा मळे छे, तेमज सर्वधर्म प्रत्ये समानदृष्टि, साधु-संतो प्रत्ये आदरभाव देखाय छे, तेनुं मूळ श्रीहेमचन्द्रसूरि महाराजा छे. तेओश्रीए आपेल आ गुणरूपी वारसो तेमज विपुल साहित्यना प्रतापेज आजे गुजरात विश्वनी बधी संस्कृति सामे टकी शक्युं छे, साथे वैश्विक साहित्य प्रकाशनमां गुजरातनुं नाम गौरवपूर्वक लेवाय छे. आ सत्यने सर्व कोईए स्वीकारवू ज पडशे.. विद्वज्जनोनी साहित्यचर्चामा जे जे कतिओनो अवश्य उल्लेख करवो पडे तेवी अनेक रचना आ कलिकालसर्वज्ञ गुरुभगवंते आपणने आपी छे. तेमांनी एक कृति एटले-३६,००० श्लोक प्रमाण त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र महाकाव्य, आ ग्रंथमा २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ बलदेव, ९ प्रतिवासुदेव, आम, ६३ महापुरुषोनुं जीवनवर्णन करवामां आव्युं छे. गुरुभगवंत द्वारा जीवनचरित्र साथे जैनधर्म मान्य कर्मसिद्धान्त, तत्त्वचर्चा, जैन भूगोळ तेमज अन्य पण कथानकोनुं विशदवर्णन बहु ज सुंदर रीते गुंथी लेवामां आव्युं छे. आ ग्रंथनी विशिष्टता ए छे के एक नवो शब्दकोश तैयार थई शके तेटला विध विध शब्दप्रयोगो अहीं उपलब्ध थाय छे. धूमकेतुना कहेवा प्रमाणे - "गुरुभगवंतने आपवामां आवेल 'कलिकाल सर्वज्ञ' ए बिरुद आ एक ज ग्रंथ प्रमाणित करी आपे तेवो विशाळ, गंभीर अने सर्वदर्शी आ ग्रंथ छे." आ महाकाव्यर्नु पठन-पाठन विपुल प्रमाणमां थई रह्यं छे. तेमां पण जैन साधु-साध्वी समुदायमां तो विशेष करीने थई रह्यं छे. दीक्षा लीधी, संस्कृत भण्या, एटले सौ प्रथम प्रायः आ ग्रंथ- अध्ययन करावाय छे. छतां पण आ अध्ययन-अध्यापन प्रवृत्ति वधु सारी रीते थाय, तेमज बाळजीवो पण आ ग्रंथर्नु बहु ज सरळ रीते पठन करी शके, आ रीते आ ग्रंथनी उपादेयता वधे तेवी शुभभावनाथी दादागुरु पूज्यपाद श्रीविजयशुभंकरसूरीश्वरजी भगवंते आ ग्रंथनी रचना करी छे. मूल ग्रंथना ते ते भावोने न्याय आपवा पूर्वक जे वर्णनात्मक भाग छे तेने काढी नांखवामां आव्यो छे. तेमज जे कठिन शब्दप्रयोगो, धातुप्रयोगो छे तेने सरल करवामां आवेल छे. आम, पद्यरूप आ ग्रंथने गद्यरूपे 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित- गद्यात्मकसारोद्धार' नामे आ ग्रंथनी रचना करवामां आवी छे. ग्रंथकर्तानो परिचय पूज्यपाद श्रीविजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी भगवंते लखेल एक लेखमांथी उद्धृत करीने आ परिचय मूकवामां आवे छे. "वि.सं. १९७१ भादरवा वदि-७ना पंचमहाल जिल्लाना गोधरा नगरमां शाह वाडीलाल शंकरलाल अने तेमना धर्मपत्नी माणेकबेनने त्यां जन्म, नाम हतुं शांतिलाल. मेट्रिक सुधीनो व्यवहारिक अभ्यास कर्या बाद धर्मक्षेत्रनी विविध प्रवृत्तिओ आनंद अने उत्साहथी करी रह्या हता. ते वखते स्वार्थमय संसारनी असारता अने वास्तविकतानो अनुभव थतां पूर्वभवना शुभसंस्कारोना प्रतापे युवानवये वैराग्यनी भावना जागी. तेमां सोनामां सुगंध भळे तेम पूज्य गुरुभगवंतोनो समागम थतां २० वर्षनी युवानवये शांतिलाले वि.सं. १९९१मां जेठ वद-११ना महुवा मुकामे प.पू. शासनसम्राट श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी दादाना वरद हस्ते दीक्षा अंगीकार करी. शासनसम्राट् श्रीना शिष्य

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