Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitrasya Gadyatmaka Saroddhar Part 01
Author(s): Shubhankarsuri, Dharmkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ 6 प्रथम आवृत्तिनी प्रस्तावना प्रजाना जीवनने जो सामाजिक, राजनैतिक, दार्शनिक अथवा आध्यात्मिक आदि कोई पण क्षेत्रमां विकसित बनाववुं होय तो सौथी पहेला आदर्श महापुरुषोना अपूर्व जीवननी कथा तथा बीजी ऐतिहासिक सामग्रीओ तैयार करवी ए घणुं जरूरी कार्य छे. आ ध्रुव सिद्धांतने लक्ष्यमां राखी आपणा जैनदर्शनमां चार अनुयोगोमांथी कथानुयोगने एक सारू स्थान देवामां आव्युं छे. आ विषयमां पूर्वकाळथी गणधर भगवंतो पूर्वधर अने बहुश्रुत आदि महापुरुषोए अनेक शास्त्रोनी सुंदर रचना करी छे. तेथी जैन धर्मना कथा साहित्यनी प्रशंसा केवल भारतीय विद्वानोए ज नहि पण पाश्चात्य विद्वानोए पण मुक्त कंठथी करी छे. जर्मनीना एक मोटा विद्वान प्रोफेसर डॉ. हर्टले जैन कथा साहित्य प्रति पोतानी सद्भावना व्यक्त करतां कह्युं हतुं के जो जैन दर्शनना धुरंधर विद्वानोए सुंदर रीतिथी कथा साहित्यनी रचना न करी होत तो भारतीय कथा साहित्यनुं एटलुं महत्त्व न रहेतुं. बारमी सदीमां गुजरात देशमां एक महान समर्थ प्रभावशाली, शासनप्रभावक अने अहिंसा संस्कृतिना उद्धारक स्वनाम धन्य, कलिकाल सर्वज्ञ भगवान श्रीमान हेमचंद्राचार्य नामना एक महान् आचार्य भगवंत थया. तेओ श्रीना प्रतिबोधथी चौलुक्यचूडामणि महाराजाधिराज कुमारपाल जैन धर्मना अनुयायी बन्या हता. ते आचार्यदेवे साहित्यना बधाय क्षेत्रमां काव्य, व्याकरण, न्याय अने दर्शन आदि अनेक विषयो पर घणा श्लोक प्रमाण ग्रंथो लख्या छे. ते कृपालु भगवंते जैन दर्शनना इतिहास स्वरूप त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र नामनो अपूर्व ग्रंथ संस्कृतपद्यमां लख्यो छे. आ ग्रंथमां आ अवसर्पिणीमां थयेला २४ तीर्थंकर भगवंतो १२ चक्रवर्तीओ, ९ वासुदेवो ९ प्रतिवासुदेव अने नव बळदेवोना चरित्रो जुदा जुदा विभागथी पर्वमा विस्तारथी आपवामां आव्या छे. आ चरित्रोनी अन्तर्गत बीजा पण केटलाय आदर्श पुरुषोनी जीवनीओनो पण समावेश थाय छे. 7 तदुपरांत चरमतीर्थपति श्रीमहावीर भगवंत पछी जे जे धर्मना प्रभावक त्यागी अने सदाचारी धर्मी गृहस्थ पुरुषो थया छे. ते सर्वेना जीवन चरित्रो परिशिष्ट पर्वमां आलेख्या छे. आ बने ग्रंथो जैन दर्शनना ऐतिहासिक तथा पोराणिक ज्ञान माटे अपूर्व गणवामां आवे छे. हवे जो आ पद्यात्मक संस्कृत ग्रंथने गद्यात्मक बनाववामां आवे तो लोकमां ते ग्रंथ अति उपयोगी नीवडे अने अपूर्व लाभ थाय. श्रीपरिशिष्टपर्वने प्रख्यात व्याख्याता कविरत्न पंन्यासप्रवर श्रीयशोभद्रविजयगणिवरना शिष्यरत्न तत्त्वचितक पंन्यासप्रवर श्रीशुभंकरविजयजीगणिवर्ये त्रण वरस पहेलां सरल अने सुगम भाषावालुं गद्यात्मक बनावीने बहु ज प्रशंसनीय कार्य कयुं छे. आ परिशिष्टपर्व ग्रंथ विद्वान पाठको द्वारा सारो आदर पाम्यो. तेथी प्रेरणा पामीने पूज्य श्रीए त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्रने गद्यात्मक बनाववुं शरु कयुं, अने तेनुं प्रथमपर्वमां आदितीर्थंकर युगप्रवर्तक भगवान ऋषभदेव भरतचक्रवर्ती आदिना चरित्रो सरळ संस्कृतमा मुद्दासर लख्या छे. तदुपरांत आ ग्रंथनी जिज्ञासुए विषयसूची जोई लेवी. प्रस्तुत ग्रंथ उपर्युक्तग्रंथनो प्रथम विभाग (पर्व) आपनी सामे राखवामां आवे छे. आज रीते पूज्य पंन्यासजी महाराज पोतानी लेखनीनो उपयोग करता रहेशे अने उपर्युक्त ग्रन्थना बीजा नव पर्वो प्रसिद्ध करशे. आ अपूर्व कार्य माटे हुं तेमने धन्यवाद आपुं छं. मुमुक्षु आत्माओ आवा ग्रंथना अध्ययन मनन अने परिशीलनद्वारा भारतना महर्षिओनी महत्ता समजी पोतानुं हित साधे एज अभ्यर्थना. लि. ऋषभदास मद्रास

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