Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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चस्प महाहियारो
पावद्वाणे सुणं, अंगुलमेमकं तहां जया पंच । rest जूनो 'एक्का सिक्कं कम्मक्लिबीन धम्मासं ।। ५३ ।। जू १ लि. १ क वा ६
पा० । अं १ । ज ५
गाना : ५३-५६ ]
सुष्णं जहन्न-भोगक्त्विरिए मजिभल्ल भोगनमीए । सत्त चिचय बालग्गा, पंचतम भोग खोणीए ॥१४४॥
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एक्को तह रहरेणू, तसरेणू तिष्णि णस्यि तुरे यो विपातयतिथि प
१ । ३ । ० । २ । ३ ।
परमाणू य अचंताणंता संखा हमेवि नियमेन । बोच्छामि सत्यमाणं, 'भिस्संवदि विद्विषादावो ।। ५६ ।।
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:- जम्बूद्वीपकी ( सूक्ष्म ) परिधि तीनलाब, सोलह हजार दोसौ सत्ताईस योजन, पाहून एक योजन ( तीन कोस ), एकसी अट्ठाईस धनुष किष्कु और हाथके स्थान में शून्य एक वितस्ति, पादके स्थान में शून्य, एक अंगुल, पांच जो एक यूक, एक लौख, कर्मभूमिकं यह बाल, जयन्य भोगभूमिके वालोंक स्थानमें शून्य, मध्यम भोगभूमिके सात बालाय, उत्तम भोगभूमिके पाँच बाखाग्र, एक रथरेणु, तीन त्रसरेणु, शुटरेणुके स्थान में हून्य दो सप्तासन, सोन अवसन्नासत्र और अनन्तानन्त परमाणु प्रमाण है । दृष्टिबाद अङ्गसे उसका जितना प्रमाण निकलता है, वह अब कहता हूँ ।। ५१-५६ ॥
१. रु. ब. य. उ. एक्को । सथि । X. . . . ggjar
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विमोचार्थ :- जम्बूद्वीपका व्यास एक लाख योजन है । इसी अधिकारकी गापा ६ के नियमानुसार ४ १ ला X १ लाख ×१०= परिधि । अर्थात् / १००००० x १०००००x१०= १००००००००००० परिधि । इसका वर्गमूल निकालनेपर ३१६२२७ योजन प्राप्त हुए और यो अवशेष रहे। इनके कोस एवं धनुष आदि बनानेके लिए अंगामें क्रमश: कोस तथा धनुष भादिका गुणा कर हरका भाग देते जाना चाहिए। यथा - ४१००००००००००००
२. अ. ब. कही । २. . . . . य. लिंग ६.ब.क. ब. रिंगसंसिद
४. रु. अ. म. ३.