Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सप्तम अध्याय - प्रस्तुत अध्याय में कुल ३४ सूत्र है जिनमें देशविरति और सर्वविरति व्रतों का तथा अतिचारों का विशद वर्णन है।
अष्टम अध्याय - प्रस्तुत अध्याय में २६ सूत्र है जिनमें मिथ्यात्वादि जन्य बन्धतत्त्व का निरूपण तात्त्विक रूप से किया गया है।
नवम अध्याय - प्रस्तुत अध्याय में ४९ सूत्र है जिनके द्वारा संवर एवं निर्जरा तत्त्व का विशद वर्णन किया गया है।
दशम अध्याय - प्रस्तुत अध्याय में ७ सूत्र है। इसमें मोक्ष तत्त्व का विशद वर्णन है। उपसंहार करते हुए ग्रन्थकार ने ३२ श्लोकों के माध्यम से अन्तिम उपदेश प्रस्तुत किए है। इनमें सिद्ध भगवान् का निर्मल स्वरूपादि विशद रीति से वर्णित है। तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पर भाष्य-टीकाग्रन्थाः १. श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र की गहनता एवम् उपादेयता को ध्यान में रखते हुए श्री उमास्वाति
महाराज ने स्वयं स्वोपज्ञभाष्य की रचना की है जो कि 'तत्त्वार्थाधिगम भाष्यम्' के रूप में अद्यावधि मुद्रित स्थिति में प्राप्त है। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के उक्त विशद भाष्य का अनुसरण करते हुए श्री सिद्धसेनगणि महाराज ने एक बड़ी टीका लिखी है। जो कि १८२०२ श्लोक प्रमाण मानी जाती है। तत्त्वार्थ पर यह सबसे बड़ी टीका है। श्री तत्त्वार्थाधिगम भाष्य पर १४४४ ग्रन्थों के प्रणेता आचार्य हरिभद्र सूरीश्वरजी महाराज द्वारा प्रणीत टीका ११००० श्लोक प्रमाण है। आचार्य श्री की यह टीका षष्ठ अध्याय के कतिपय अंश तक थी जिसे आचार्य यशोभद्र सूरि जी ने परिपूर्ण किया था। इस ग्रन्थरत्न पर मुनिराज चिरन्तनकृत 'तत्त्वार्थ टिप्पण' भी नितान्त उपादेय है। इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय पर न्याय विशारद महोपाध्याय श्री यशोविजय जी ने 'भाष्यतर्कानुसारिणी' टीका रची है। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के आधार पर ही आगमोद्धारक श्री सागरानंद सूरीश्वर जी महाराज साहब ने 'तत्त्वार्थकर्तृत्वतन्मत निर्णय' नामक ग्रन्थ लिखा है। भाष्यतर्कानुसारिणी टीका पर शासन सम्राट् श्रीमद् विजय नेमसूरीश्वरजी महाराज के प्रधान पट्टधर न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय दर्शन सूरीश्वर जी महाराज ने श्री तत्त्वार्थसूत्र पर विवरण को हृदयंगम कराने की भावना से 'गूढार्थदीपिका' नामक विशद वृत्ति की रचना की है।