Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे ९ । १ श्रुतज्ञान के सन्दर्भ में तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के प्रथम अध्याय में 'श्रुतमनिन्द्रियस्य' इस सूत्र की व्याख्या एवं विवेचनामृत में स्पष्ट किया जा चुका है। अतः वहीं से इसका विशद अनुसंधान करना चाहिए। 5 मूल सूत्रम् - ६६ ] विचारोऽर्थव्यञ्जनयोग संक्रान्तिः ॥ ४६ ॥ सुबोधिका टीका विचार इति । अर्थ-व्यञ्जन - योगानां संक्रान्तिः विचारः कथ्यते । सूत्रेऽस्मिन् त्रयो विषया: सन्ति-अर्थ- व्यञ्जन - योगाश्चेति । ध्यानविषया भूतोऽर्थः । स च द्रव्य - पर्याय-भेदेन द्विधा भवति । यतो हि द्रव्य-पर्याययोः समूह एवार्थः पदार्थः कथ्यते । श्रुतवचनं व्यञ्जनम् । कायवाङ्मनः कर्मयोग: एवात्र योगः कथितः। * सूत्रार्थ - अर्थ, व्यञ्जन एवं योग की संक्रान्ति को विचार कहते हैं। * विवेचनामृतम् * विचार का तात्पर्य है- अर्थ, व्यन्जन एवं योग की संक्रान्ति । प्रस्तुत सूत्र में तीन विषय हैंअर्थ, व्यञ्जन और योग । ध्यान के विषय स्वरूप ध्येय को अर्थ कहते हैं । श्रुतवचन का नाम ही व्यञ्जन है। श्रुतवचन से अर्थविशेष का अभिव्यञ्जन होता है। मन, वचन, काया के द्वारा जो आत्मप्रदेशों में स्पन्दन क्रिया होती है- उसे 'योग' कहते हैं। 5 मूल सूत्रम् - स्मयगृदृष्टि श्रावकविरतानन्तवियोजक -दर्शन-मोह क्षपकोपशम - कोपशान्त-मोह क्षपक क्षीण मोहजिना: क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः ॥४७॥ सुबोधिका टीका सम्यगिति । संचित कर्म निर्जरा कारकाणि दश स्थानानि सन्ति । तद्यथा - सम्यग्दृष्टिः श्रावकः विरतः अनन्तानुबन्धि वियोजक:, दर्शनमोहक्षपकः, मोहोपशमक:, उपशान्तमोहः, मोहक्षपक:, क्षीणमोहः जिनश्चेति । एते दश असंख्येयगुणनिर्जरा भवन्ति । * सूत्रार्थ - सम्यग् दृष्टि, श्रावक, विरत, अनन्तानुबन्धि वियोजक, दर्शन मोहक्षपक, उपशमक उपशान्तमोह, क्षपक, क्षीणमोह तथा जिन ये दश, क्रमशः असंख्येय गुण निर्जरा वाले होते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116