Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 93
________________ ७८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे वितर्क से है एक आश्रय, पूर्वधर दो गाहते, वितर्क से है श्रुत ही जानो तच्वार्थ में विचारते । अर्थव्यञ्जन योग के सह विचार की है धारणा, आखिरी दो मात्र होते केवली को जानना ॥ * निर्जरा एवं निग्रन्थवर्णन * हिन्दी पद्यानुवाद - 5 सूत्राणि सम्यग् + दृष्टि + श्रावक + विरतानन्त + वियोजक + दर्शन - मोह-क्षप कोपशम - शान्त मोह क्षपक क्षीण मोह जिना: क्रमशोऽ संख्येय + गुण + निर्जरा । ॥४७॥ पुलाकबकुश + कुशील + निर्ग्रन्थ + स्नातका निर्ग्रन्थाः ॥४८॥ संयमश्रुत + प्रति + सेवना + तीर्थ + लिङ्ग + लेश्योपपात + स्थानविकल्पतः साध्याः॥४९॥ समकितधारी श्रावक पुनः विरति को जोडिये, मानिये । अनन्तानुबन्धी वियोजक चौथा क्रमशः दर्शन - मोह-६ ह-क्षपक उपशम, अनुक्रम से जोडिये, उपशांत मोही क्षपक क्षीण पुनः जिनवर मानिये ॥ इन स्थान में दशवें अनुक्रम, असंख्य गुणी है निर्जरा, ध्यान करके उदय पाते, क्षमाधारी मुनिवरा । पुलाक, बकुल कुशील, निर्ग्रन्थ स्नातक पञ्चमहाव्रत साधका, निग्रन्थ का यह भेद पंचक, धारिये आराधना ॥ [ संयम श्रुत परिसेवन तीर्थ लिंग पंचम गिनो, लेश्या उपपात स्थान आठवा, यह भी गिनो । निर्ग्रन्थ पंचक अडाहार सूत्र में व्याख्या सरल, अध्याय नवमा पूर्ण होता, स्वाध्याय करते हैं विरल ॥ ९ । १

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