Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 91
________________ ७६ ] * हिन्दी पद्यानुवाद - प्रथम के त्रय आशरीरी, जीव को विचारिये । एकाग्रमन से मुनि सदृश, अन्य चिन्ता रोधिये । काल के अन्तमुहूर्त प्रमाण ध्यान धरे तभी, ध्यान उसको मानिये, सत्य साक्षात्कार भी ॥ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे आर्त- रौद्र - धर्म - शुक्ल, ध्यान के ये भेद हैं, प्रथम के जो ध्यान दो हैं, होता तभी भव भेद है। दो ध्यान अन्तिम हैं, उन्हीं को मोक्ष का हे + तू कहा, जो करे स्वीकार उनको, अवरोध विषयों का कहा ॥ * चारों ध्यानों का स्वरूप 5 सूत्राणि - आर्त्तममनोज्ञानां संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृति + समन्वा + हारः ॥३१॥ वेदनायाश्च ॥३२॥ विपरीतं मनोज्ञानाम्॥३३॥ निदानञ्च ॥३४॥ तदविरत - देशविरत + प्रमत्त + संयतानाम्॥३५॥ हिंसानृतस्तेय विषय + संरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेश + विरतयोः ॥३६॥ आज्ञाऽपाय- विपाक संस्थान-विचयाय धर्म + प्रमत्त + संयतस्य ॥३७॥ उपशान्त क्षीण + कषाय + योश्च ॥३८॥ शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः ॥३९॥ परे केवलिनः ॥ ४०॥ * हिन्दी पद्यानुवाद यदि मिले अमनोज्ञ चिन्ता, आर्तप्रिय वियोग चिन्ता, रोगचिन्तन से दुखी मन, प्राप्य की हो लभ्य चिन्ता । मनोवांछित विषय मिलते, तीव्र उसमें वासना हो, हैं सूत्र में ये चार भेद आर्तध्यान योग जो हों ॥ [ ९ । १

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