Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 99
________________ ८४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ १०।१ प्राप्त हो जाती है किन्तु चार अघाति कर्म - वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र- ये शुभ कर्म शेष रह जाते हैं। जब उनके चार अघाति कर्म भी सर्वथा क्षीण हो जाते हैं तब केवली भगवान् का औदारिक शरीर से भी वियोग हो जाता है। कर्मरूपी जन्म हेतु कलाप के नहीं होने पर पुनर्जन्म का सर्वथा अभाव हो जाता है । यह स्थिति मोक्ष की होती है। सकल कर्मों का सर्वथा क्षय मोक्ष कहलाता है। मोक्ष से क्षय जन्म मरण रहितता सिद्ध होती है । मोक्ष, बन्ध का प्रतिपक्षी होता है । बन्ध हेतुओं का निर्जरा द्वारा सर्वथा आत्यन्तिक क्षय हो जाना ही मोक्ष है। आत्मा, कर्मबन्धनों से सर्वथा मुक्त होकर स्वाभाविक शुद्ध-बुद्ध एवं निरंजन स्थिति में आता है । यही अवस्था मोक्ष या मुक्ति के नाम से शास्त्रों में प्रतिपादित की जाती है । जीव की सर्वथा कर्मरहित शुद्धावस्था ही मोक्ष है। मोक्ष के स्थिति में पूर्वकर्म तो रहते ही नहीं नवीन कर्मोदय की भी बन्ध कारणों के अभाव में कोई सम्भावना नहीं रहती है। आत्मा (जीव) मोक्षावस्था में पूर्णरूपेण निर्लेप रहता है। ध्यातव्य है, कि मनुष्य गति ही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र स्वर्णिम अवसर है। मोक्ष की स्थिति में आत्मा शुद्ध, बुद्ध, निर्लेप, निरजंन सवदर्शी, सर्वज्ञ तथा अनन्त चतुष्टय सम्पन्न रहता हुआ आत्मस्वरूप में शाश्वत् सुख का अनुभव करता है। अन्यच्च औपशमिकाद्यभावादपि मोक्ष प्राप्तिरिति वर्ण्यते - 5 सूत्रम् - औपशमिकादिभव्यत्वा + भावाच्चन्यत्र + केवल + सम्यक्त्व ज्ञानदर्शनसिद्धेभ्यः ॥ १०- -४॥ सुबोधिका टीका पूर्वसूत्रे सर्वथा, सर्वकर्मक्षयान्मुक्तिः प्रदर्शिता । एतदतिरिक्तं औपशमिक- क्षायिकक्षायोपशमिकौदायिक-पारिणामिक + भावनाम् अभावाद् भव्यत्वस्याप्य + भावात् मोक्ष प्राप्ति भर्वतिती ज्ञेयम् । औपशमिकादिभावेषु केवलसम्यक्त्वं केवल ज्ञानं, केवलदर्शनं सिद्धत्वभावोऽपि समागच्छति । एतेषां चतुर्णां भावानामतिरिक्तम् औपशमिकादि भावा + ना + मभावे सति मुक्ति = सिद्धि र्भवति। केवलि भगवत्स्त्वपि एते क्षायिकभावा: नित्या: सन्ति । अतएव चैते मुक्तजी + वेष्वपि प्राप्यन्ते । * सूत्रार्थ - सर्वकर्मक्षय के अतिरिक्त, औपशमिक - क्षायिक क्षायोपशमिक-औदायिकपारिणामिक तथा भव्यत्व के अभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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