Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 101
________________ ८६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ १०।१ प्रश्ने सति- आलोकान्तात् लोकान्तं संसरान्तं यावदिति। अत्र=सूत्रे तदनन्तर पदेन कृत्नकर्म क्षयानन्तरम् औपशमिकाद्यभावानतरमिति द्वयमपि ग्राह्यम्। यतो हि सम्पूर्णकर्म + क्षयानन्तरं तथा औपशमिकादिभावाऽभावानन्तरं मुक्तो जीव: ऊर्ध्वगमनं करोति। कर्मणां क्षये सति एकस्मिन क्षणे युगपदे च अवस्थात्रयं प्राप्नोति जीवः। यथा च-शरीर वियोगम् सिद्धयमान गतिं लोकान्त प्राप्ति ञ्चेति। * सूत्रार्थ - कृस्नकर्म (सम्पूर्णकर्म) के क्षय तथा औपशमिकादि भाव के अभाव के पश्चात् मुक्तजीव लोकान्त पर्यन्त ऊर्ध्वगमन करता है। .. - * विवेचनामृतम् * उस सकल कर्मक्षय तथा औपशमिकादिभाव के अभाव के बाद आत्मा ऊँचे लोकान्त तक जाता है। कर्मका क्षय होने पर देह वियोग, सिध्यमान गति तथा लोकान्त प्राप्ति- ये तीनों एक समय- एक साथ होते हैं। ___ प्रयोग (वीर्यान्तराय का क्षय अथवा क्षयोपशम जन्य) स्वाभाविक गति, क्रिया विशेष के कार्य, उत्पत्तिकाल, कार्यारम्भ और कारण का विनाश जिस तरह एक साथ होता है, उसी तरह यहाँ भी समझना चाहिए। विशेष - जिस समय कर्मों का क्षय होता है, उसी समय देह का वियोग, ऊर्ध्वगमन के लिए गति तथा लोकान्त गमन भी होता है। अर्थात् समस्तकर्मक्षय देहवियोग, ऊर्ध्वगति, लोकान्तगमनये चार एक ही समय में होते हैं। लोक के ऊपर के अन्तिम एक गाऊ के अन्तिम छठे विभाग में ३३३५ मनुष्य प्रमाण विभाग में श्री सिद्ध भगवन्त जीव विराजते है। प्रत्येक श्री सिद्धभगवन्त का मस्तक, अन्तिम प्रदेश का स्पर्श करते रहते हैं। क्योंकि कर्मक्षय होते ही जहाँ जीव होता है, वहीं से सीधी ऊर्ध्वगति करता है किन्तु अलोकाकाश में गति में सहायक धर्मस्तिकाय का अभाव होने से लोकाकाश का अन्तिम प्रदेश आते ही रुक जाता है। श्री सिद्ध भगवन्तों की अवगाहना अपने पूर्व शरीर की भाग की रहती है। चूंकि शरीर में भाग जितना खाली स्थान में वायु भरा हुआ है। योग का निरोध होते ही वायु निकल जाने से % भाग का संकोच हो जाता है। इससे शरीर विभाग का रहता है। अधिक से अधिक ५०० धनुष्य की काया वाले जीव मोक्ष में जा सकते हैं। ५०० धनुष्य की काया का ५ भाग, ३३३५धनुष्य होता है। इसलिए आकाश में ऊपर के अन्तिम प्रदेश से नीचे के ३३३ भाग तक श्री सिद्ध भगवन्त जीव रहते हैं। आम एक गाउ से छठे विभाग और उतकृष्ट अवगाहना वाला शरीर का % भाग, ३३३५ धनुष्य के समान होता है।

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