Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ ८८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ १०१ ___ ऊर्ध्वगौरवात् पूर्वप्रयोगादिभ्यश्च हेतुभ्यस्तथास्य गति + परिणामो येन सिध्यमानगति: प्रजायते। सिध्यमानगति रुर्ध्वमेव भवति- न च तिर्यगधो वा कर्मसङ्ग विनिमुक्तत्वात्। व्यपगते च विरुद्धाकारण संयोगे सिध्यमान + जीव + गति + रुर्ध्वमेव + लोकान्तं यावत् प्रजायते। धर्मास्तिकायस्य सद्भावो लोकान्तं यावदेव भवति। अतएव लोकान्तं यावदेव मुक्तजीवगति र्भवति न तु तत: परम्। लोकान्तं प्राप्य मुक्तो निष्क्रियो भवति। ४५ लाख योजन से बाहर सिद्ध स्थान में जाने वाला कोई भी नहीं होने के कारण सिद्धजीव के अपर ४५ लाख योजन प्रमाण भाग में ही होते हैं। श्री सिद्धशिला का विष्कंभ भी ४५ लाख योजन है। इसके जितने भाग में सिद्धशिला है, उतने ही भाग में श्री सिद्धीशिला ३५ गाउ पर श्री सिद्धजीव जीव, जिस स्थान में समस्त कर्मों का क्षय करता है उसी स्थान में से सीधा असर जाता है। अर्थात् मोक्ष में जहां एक सिद्ध परमात्मा है। वहीं अनन्त सिद्धभगवन्त मोक्ष में गए हैं। कहीं एकाध स्थान से अनन्त जीव मोक्ष में गए हों- ऐसा नहीं है। ४५ लाख योजन प्रमाण ढाई द्वीप का कोई भाग-ऐसा नहीं है- जहाँ से नीचे के अन्तिम भाग तक ३ गाउ होते हैं। इसलिए सिद्धजीवों और सिद्धशिला के बीच ३५ गाउ का अन्तर होता है। इसका तात्पर्य यह है कि सिद्धशिला के पश्चात् ३४ गाउ ऊपर जाते हुए श्री सिद्ध जीव आते हैं। ढाईद्वीप का विष्कम्भ ४५ लाख योजन से बाहर सिद्धि में जाने वाला कोई नहीं होने के कारण श्री सिद्ध जीव ४५ लाख योजन प्रमाण भाग में होते हैं। श्री सिद्धशिला का विष्कम्भ भी ४५ लाख योजन ही है। इसके जितने विभाग में सिद्धशिला है, उतने ही विभाग में सिद्धशिला से ३४ गाउ पर श्री सिद्धजीव है। सिद्धशिला पर अनन्त सिद्ध परमात्माओं के होने पर भी कोई संकडापन महसूस नहीं होता है क्योंकि श्री सिद्धपरमात्मा तो अरूपी हैं। जिस प्रकार ज्योति में ज्योति मिल जाती है, वैसे ही सभी श्री सिद्धभगवन्त भी मिल जाते है ॥१०-५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116